योगिनी दशा क्या है और इसका प्रभाव कैसे होता है?

योगिनी दशा क्या है और इसका प्रभाव कैसे होता है ?

योगिनी दशा : जिस प्रकार व्यक्ति भले ही संपूर्ण स्वस्थ हो किंतु नेत्र के अभाव में वह अस्वस्थ व अपूर्ण ही कहा जाएगा । इसी प्रकार ज्योतिषीय मार्गदर्शन के अभाव में सांसारिक मनुष्यों का जीवन व्यतीत करना ठीक ऐसे ही है, जैसे कोई दुर्गम मार्ग पर आंखें बंद किए चल रहा हो ।
ज्योतिष शास्त्र में जातक के जीवन का भविष्य संकेत करने के लिए अनेक पद्धतियां हैं । उन पद्धतियों में घटनाओं के समय को सुनिश्चित करने के लिए दशा पद्धति को अपनाया जाता है । ज्योतिष शास्त्र में विंशोत्तरी, अष्टोत्तरी, चर व योगिनी दशाओं के माध्यम से जातक के वर्तमान व भविष्य के बारे में दिशा-निर्देश दिए जाते हैं ।
इन दशाओं में विंशोत्तरी दशा को सर्वत्र ग्राह्य व मान्य किया जाता है । किंतु विंशोत्तरी दशा के अतिरिक्त एक और दशा है, जो जातक के जीवन पर अपना महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है, वह दशा है- योगिनी दशा ।
योगिनी दशा की गणना किए बिना कोई भी ज्योतिषी जातक के भविष्य के बारे सटीक भविष्य संकेत कर ही नहीं सकता । योगिनी दशा के बारे में मान्यता है कि ये दशाएं स्वयं भगवान शिव के द्वारा बनाई हुई हैं एवं जातक के जीवन को प्रभावित करती हैं । ज्योतिष शास्त्र में योगिनी दशाओं का महत्वपूर्ण स्थान है ।
योगिनी दशाओं के प्रकार-
योगिनी दशाएं 8 प्रकार की होती हैं एवं इनके भी अधिपति ग्रह होते हैं, ये हैं-
1. मंगला- चन्द्र
2. पिंगला- सूर्य
3. धान्या- गुरु
4. भ्रामरी- मंगल
5. भद्रिका- बुध
6. उल्का- शनि
7. सिद्धा- शुक्र
8. संकटा- राहु
योगिनी दशाओं के भोग्यकाल वर्ष-
विंशोत्तरी दशाओं के समान ही योगिनी दशाओं के भी निश्चित भोग्य कालखंड होते हैं। आइए जानते हैं कि किस योगिनी की दशा कितने वर्षों की होती है?
1. मंगला- 1 वर्ष
2. पिंगला- 2 वर्ष
3. धान्या- 3 वर्ष
4. भ्रामरी- 4 वर्ष
5. भद्रिका- 5 वर्ष
6. उल्का- 6 वर्ष
7. सिद्धा- 7 वर्ष
8. संकटा- 8 वर्ष
कौन सी होती है शुभ योगिनी?
विंशोत्तरी दशा में जहां शुभाशुभ समय का निर्णय केवल महादशानाथ व अंतरदशानाथ की जन्म कुंडली में स्थिति के आधार पर किया जाता है, वहीं योगीनी दशा में इसके अतिरिक्त प्रत्येक योगीनी का एक निश्चित फल भी होता है जिसके आधार पर जातक को परिणाम प्राप्त होते हैं ।
शुभ योगीनी– मंगला, धान्या, भद्रिका, सिद्धा
अशुभ योगिनी- पिंगला, भ्रामरी, उल्का, संकटा
इनमें संकटा की दशा सर्वाधिक अशुभ होती है । यदि संकटा के साथ-साथ विंशोत्तरी दशाओं में भी किसी अशुभ ग्रह की महादशा-अंतरदशा हो तो जातक को भीषण कष्ट भोगना पड़ता है । यदि मारकेश की महादशा/अंतरदशा के साथ संकटा की दशा भी चल रही हो, तो जातक का जीवन तक संकट में पड़ जाता है ।
जन्म पत्रिका विश्लेषण कराते समय योगीनी दशाओं के संबंध जानकारी लेकर अशुभ योगीनी की वैदिक शांति कराकर दुष्प्रभावों को कम किया जा सकता है ।

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Acharya Pradip Kumar is renowned as one of India's foremost astrologers, combining decades of experience with profound knowledge of traditional Vedic astrology, tantra, mantra, and spiritual sciences. His analytical approach and accurate predictions have earned him a distinguished reputation among clients seeking astrological guidance.

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