कल्याणकारी हनुमान शाबर मंत्रो अनुष्ठान :

कल्याणकारी हनुमान शाबर मंत्रो अनुष्ठान :

शाबर मंत्रो अनुष्ठान : कलियुग में प्राणी मात्र के कष्टों के आधिक्य को जानकर श्रीउमा-महेश्वर ने शाबर मंत्रो की रचना की । इन शाबर मंत्रो के द्वारा पुष्टीकरण, मारण, मोहन, उच्चाटन तथा स्तम्भन आदि समस्त तांत्रिक क्रियाएँ सहज ही संपादित की जा सकती हैं । इन शाबर मंत्रो की शब्द योजना कुछ अस्पष्ट सी होती हैं, परन्तु ये मन्त्र चमत्कारिक शक्ति से पूर्ण होते हैं । स्वयं तुलसीदास जी ने कहा है –
कलि बिलोकि जगहित हर गिरिजा । साबर मंत्रजाल जिन्ह सिरिजा।।
अनमिल आखर अरथ न जापू। प्रगट प्रभाव महेस प्रतापू।।
ये शाबर मंत्रो अत्यन्त शक्तिशाली होते हैं, परन्तु तान्त्रिकों द्वारा लम्बे समय से इन्हें गुप्त रखा गया है । ये मन्त्र सहज ही सिद्ध हो जाते हैं, परन्तु सिद्धि के उपरान्त जनकल्याण हेतु ही इनका प्रयोग किया जाना चाहिये । कुछ लोगों का मानना है कि शंबर नामक असुर ने जिस मायाविद्या की रचना की थी, शाबर मंत्र उसी की शाखा है । वस्तुतः शाबर मंत्रो अभिचार कर्मों (मारण, मोहन, उच्चाटन आदि) से बचाव के अमोघ उपचार के रूप में विख्यात हैं । इसके अलावा अन्य रोगों से भी इन शाबर मंत्रो द्वारा मुक्ति पाई जा सकती है ।
शाबर मंत्रो का उच्चारण करते हुए जाप किया जाता है । इस कारण ये ध्वनि प्रधान माने गए हैं । शाबर मंत्र पूर्णतया लाभ प्रदान करते हैं, इसमें संशय नहीं है । इनमें देव, गुरु, भैरव, गोरखनाथ, लोना चमारी आदि की दुहाई देने का विधान है । ये शक्तियां साधकों को साधनोपरांत स्वयं की प्रत्यक्ष अनुभूति भी कराती हैं ।
इन चमत्कारिक शाबर मंत्रो के संसार में पवनपुत्र हनुमान अत्यन्त महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हैं । शताधिक शाबर मंत्रो के प्रधान देवता स्वयं हनुमान ही हैं, जबकि अन्य मन्त्रों में इनके नाम का स्मरण किया गया है । हनुमान जी से संबंधित मन्त्रें द्वारा तंत्र की समस्त क्रियाएँ सम्पादित की जा सकती हैं ।शाबर मंत्रो को सिद्ध करने के बाद ही प्रयोग में लाया जाना चाहिए ।
इससे संबंधित कुछ प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं –
१) इन शाबर मंत्रो की सिद्धि हेतु अनुष्ठान का प्रारंभ होली, दीपावली, अमावस्या, ग्रहण, नागपञ्चमी, नवरात्रि आदि को ही करना चाहिए ।
(२) हनुमान जी से संबंधित शाबर मंत्रो की सिद्धि हेतु मंगलवार तथा शनिवार के दिन प्रशस्त माने गए हैं ।
(३) पञ्चमुखी हनुमान जी की मूर्त्ति का ही प्रयोग शाबर मंत्रो के सन्दर्भ में करना उत्तम रहता है । हनुमान जी के पञ्चमुखों में वानर, व्याघ्र, वराह, अश्व तथा गरुड़ परिगणित हैं, जिनके द्वारा मारण, मोहन, उच्चाटन, स्तम्भन तथा पुष्टिकरण कर्म किए जाते हैं ।
(४) योग्य गुरू के अभाव में भगवान श्रीराम को ही गुरू मान कर हनुमान जी के शाबर मंत्रो की सिद्धि की जा सकती है ।
(५) सिद्धि हेतु शाबर मंत्रो का 1008 संख्या में जप कर इतनी ही संख्या से हवन भी करना चाहिए ।
(६) यदि शाबर मंत्रो की संख्या निर्धारित हो तो उतने ही संख्या में जप करें ।
(७) सिद्धि के उपरान्त भी प्रत्येक अमावस्या तथा ग्रहण काल में इन शाबर मंत्रो की 11 माला का जप अवश्य करें । ताकि मन्त्र की चैतन्यता बनी रहे ।
केसरीनंदन हनुमानजी से संबद्ध कुछ शाबर मंत्र जनहितार्थ दिए जा रहे हैं । साधक इनका लाभ उठा सकते हैं ।
पीलिया रोग निवारण का मंत्र :
“ॐ वीर वैताल असराल नारसिंह खादी तुर्षादी, पीलिया कूं भिदाती, कारै, जारै पीलिया रहै न नेक निशान जो कहीं रह जाए तो हनुमंत की आन, मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र इश्वरो वाचा।”
उपरोक्त शाबर मंत्रो को सिद्ध करने के बाद पीलिया रोग दूर करने हेतु कांसे की एक कटोरी में तिल का तेल लें। इस कटोरी को रोगी के सिर पर रखकर मंत्र जाप करते हुए कुशा (डाभ) से तेल को चलाएं। मंत्र के प्रभाव से तेल जब पीला हो जाए तब कटोरी नीचे रखें। ऐसा तीन दिन करने से रोग दूर हो जाता है।
अर्शरोग दूर करने का मंत्र :
“ॐ काकाकर्ता क्रोरी करता, ॐ करता से होय व रसना, दशहूं स प्रकटे खूनी बादी बवासीर न होए, मंत्र जान के न बताए, द्वादश ब्रह्म हत्या का पाप होय, शब्द सांचा पिण्ड काचा तो हनुमान का मंत्र सांचा, फुरो मंत्र इश्वरो वाचा।”
उपरोक्त मंत्र एक लाख जाप से सिद्ध होता है। जो व्यक्ति इसे सिद्ध कर लेता है, उसे अर्शरोग नहीं होता। रात्रि के रखे जल को 21 बार अभिमंत्रित कर शौच को जाएं तथा शौच के बाद अभिमंत्रित जल से गुदा प्रक्षालन से अर्श रोग दूर होता है।
कान दर्द दूर करने का मंत्र :
“बनरा गांठि बनरी तो ढांट हनुमान अंकटा, बिलारी बाधिनी थनैला कर्ण मूल जाई श्री रामचंद्रवानी जलपथ होई।”
कान-दर्द हो तो उपरोक्त मंत्र से झाड़ें। हाथ में भभूति लेकर सात बार मंत्र का उच्चारण करके भभूति को कान से छुआकर नीचे डाल दें।
नेत्र रोग दूर करने का मंत्र :
“ॐ झलमल जहर भरी तलाई, अस्ताचल पर्वत से आई, जहां बैठा हनुमंता, जाई फूटै न पाकै करै, न पीड़ा जाती, हनुमंत हरे पीड़ा मेरी। मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा सत्य नाम आदेश गुरु को।”
ग्यारह बार मंत्रोच्चारण कर नीम की डाली से यह क्रिया तीन दिन तक नियमित करने से नेत्र रोग दूर होता है।
“ॐ नमो वन में ब्याई बानरी जहां-जहां हनुमान अंखिया पीर कषवा रो गेहिया थने लाई चारिऊ जाए भस्मंतन गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा।”
यह शाबर मंत्रो 7 बार उच्चारण करने से रोग ठीक हो जाता है।
सिरदर्द दूर करने का मंत्र :
“लंका में बैठ के माथ हिलावै हनुमन्त। सों देखि राक्षसगण पराय दूरन्त।।
बैठी सीता देवी अशोक वन में। देखि हनुमान को आनन्द भई मन में।।
गई उस विषाद देवी स्थिर दर्शाय। अमुक के सिर व्यथा पराय।।
अमुक के नहीं कछु पीर नहीं कछु भार। आदेश का मारण्या हरि दासी चण्डी की दोहाई।।”
सिरदर्द से पीडि़त व्यक्ति को दक्षिण दिशा में मुंह करके बैठाएं। फिर उसके सिर को दाएं हाथ से पकड़कर उपरोक्त मंत्र सात बार पढ़कर सिर पर फूंक मारें। ऐसा सात बार करने से सिरदर्द से छुटकारा मिल जाता है।
आधीसीसी दूर करने का मंत्र :
(1) “ॐ नमो वन में ब्याई वानरी, उछल वृक्ष पै जाय। कूद-कूद शाखान पे कच्चे वन फल खाय।।
आधा तोड़े आधा फोड़े आधा देय गिराय। हंकारत हनुमान्जी आधा सीसी जाय।।”
(2) “वन में ब्याई अंजनी कच्चे वन फल खाय।
हांक मरी हनुमन्त ने इस पिण्ड से आधासीसी उतर जाय।।”
उपरोक्त दोनों मंत्रों में से किसी भी एक मंत्र से झाड़ने पर आधासीसी का दर्द दूर होता है।
बिच्छू का विष उतारने का मंत्र :
“पर्वत ऊपर सुरही गाई। कारी गाय की चमरी पूछी। ते करे गोबरे बिछी बिआई। बिछी तौरकर अठारह जाति। 6 कारी 6 पीअरी 6 भूमाधारी 6 रत्न पवारी। 6 कुं हुं कुं हुं छारि। उतरू बिछी हाड हाड पोर पोर ते। कस मारे लील क्रंठ गरमोर। महादेव को दुहाई, गौरा पार्वती को दुहाई। अनीत टेहरी शडार बन छाई, उतरहिं बीछी हनुमंत की आज्ञा दुहाई हनुमत की।”
प्रयोग करने से पहले मंत्र को होली, दीपावली अथवा सूर्य, चंद्र ग्रहण काल में मंत्र सवा लाख जपने से सिद्ध हो जाता है। बिच्छू के काटे को बंध बांधकर मोर पंख या नीम की डाली से झाड़ा दें।
दांत का कीड़ा झाड़ने का मंत्र :
“ॐ नमो आदेश गुरु को वन में ब्याई अंजनी जिन जाया हनुमन्त, कीड़ा मकड़ा माकड़ा ए तीनों भस्मन्त, गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।”
दीपावली की रात्रि से जाप शुरू कर एक लाख बार जपें तो मंत्र सिद्ध हो जाएगा। जब मंत्र सिद्ध हो जाए तब नीम की डाली से झाड़ने पर दांत-दर्द शीघ्र ठीक हो जाता है। मंत्रोच्चारण के समय कटेरी के बीजों का धुआं दें और बांस या कागज की नली (फूंकनी) से फूंक मारें।
भूत-प्रेत दूर करने का मंत्र :
“बांधो भूत जहां तु उपजो छाडो, गिरे पर्वत चढ़ाई सर्ग दुहेली तुजिभ झिलमिलाहि हुंकारे हनुमंत पचारइ भीमा जारि-जारि जारि भस्म करे जों चापैं सिंऊ।”
108 बार उपरोक्त मन्त्र का जप कर लोबान का धुंआ दें।
सर्प विष उतारने का मंत्र :
“जेहि समय गए राम वन माहीं। तिनका तहां कष्ट अति होंही।।
सिय हरण अरु बाली नाशा। पुनि लागी लषन नाग फांसा।।
बिकल हरि देख नाग फांसा। स्मरण करहिं गरुड निज दासा।।
विनता नन्दन बसहिं पहारा। पहुंचे स्मरण ते ही लंका पल पारा।।
रहे लखन बांधि जितने सब नागा। सो गरुड़ देख तुरत सब भागा।।
अमुक अंग विष निर्विष होइ जाई। आदेश श्रीरामचन्द्र की दुहाई।।
आज्ञा विनतानन्दन की आन।”
जब रोगी मरणासन्न हो, तब उक्त राम-सार मंत्र का सात या बारह बार उच्चारण कर झाड़ा देने से रोगी को चेतना आती है। मंत्र में ‘अमुक’ के स्थान पर रोगी का नाम लें।
अण्डवृद्धि रोग तथा सर्प निवारण का मंत्र :
“ॐ नमो आदेश गुरु को जैसे को लेहु रामचन्द्र कबूत सो सई करहु राध बिनु कबूत पवन सूत हनुमन्त धाऊ हरहर रावन कूट मिरावन श्रवइ अण्ड खेतहि श्रवइ अण्ड अण्ड विहण्ड खेतहि श्रवइ वाँज गर्भहि श्रवइ स्त्री पीलहि श्रवइ शापहर हर जम्बीर हर जम्बीर हर हर हर।”
उक्त मंत्र बोलते हुए फूले हुए अंडकोष को हाथ से सहलाने तथा अभिमंत्रित जल रोगी को पिलाने से रोग दूर होता है। इसी मंत्र से अभिमंत्रित मिट्टी का ढेला यदि सांप के बिल पर रखा जाए तो सांप स्वयं ही बाहर निकल आता है।
चूहे भगाने का मंत्र :
“पीत पीताम्बर मूशा गांधी। ले जाइहु तु हनुवन्त बांधी।
ए हनुमन्त लंका के राऊ। एहि कोणे पैसेहु एहि कोणे जाऊ।।”
स्नान करके हल्दी की पांच गांठें व कुछ चावल अभिमंत्रित कर घर या खेत में डालने से चूहे भाग जाते हैं।
देह रक्षा का मंत्र :
“ॐ नमः वज्र का कोठा जिसमें पिण्ड हमारा पैठा, ईश्वर कुञ्जी ब्रह्मा का ताला मेरे आठों धाम का यती हनुमंत रखवाला।”
यह मंत्र 1008 बार जपने से सिद्ध हो जाता है। नित्य एक माला (108 बार) जपने से अभिचार प्रभावहीन होता है।उक्त मंत्र सिद्ध करने के बाद राख से रोगी स्त्री से झड़वाएं तथा स्वयं मंत्रोच्चारण करें।
स्त्रियों की स्तन-पीड़ा निवारण का मंत्र :
“ॐ वन में जाई अंजनी जिन जाया हनुमन्त। सज्जा खधा ढांकिया सब हो गया भस्मन्त।।”
कांख में होनेवाले फोड़े को झाड़ने का मंत्र :
“ॐ नमो कखलाई भरी तलाई जहाँ बैठा हनुमन्ता आई। पके न फूटै चले न पीड़ा रक्षा करे हनुमन्त वीर, दुहाई गोरखनाथ की शब्द सांचा पिण्ड काचा फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा। सत्य नाम आदेश गुरु को।”
उक्त मंत्र 21 बार पढ़कर झाड़ने व जमीन की मिट्टी लगाने से कांख का फोड़ा ठीक हो जाता है।
धरन बैठाने का मन्त्र :
“ॐ नमो नाड़ी नाड़ी नौ सौ नाड़ी बहत्तर कोठा चले अगाड़ी डिगे न कोठा चले न नाड़ी। रक्षा करे जती हनुमन्त की आन मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।”
इसके निवारण के लिए सूत के धागे में नौ गांठें लगाकर प्रत्येक गांठ पर नौ बार उपरोक्त मंत्र फूंकें। फिर उसे छल्ले की तरह बनाकर पीडि़त व्यक्ति की नाभी पर रखें और नौ बार पुनः फूंक मारें।
ऊपरी हवा शान्ति :
“ॐ नमो आदेश गुरू का। काली चिड़ी चिड़-चिड़ करे। धौला आवे वाते आवे हरे। यती हनुमान हाँक मारे। मथवाई और बाई जाये भगाई। हवा हरे। गुरू की शक्ति मेरी भक्ति। फुरो मन्त्र ईश्वरोवाचा।”
इस मन्त्र का उच्चारण 21 बार कर, मोर पंख से झाड़ा लगाने से ऊपरी दोष की शान्ति होती है।
नकसीर :
“ॐ नमो आदेश गुरू का। सार सार महासागरे बाँधूं। सात बार फिर बाँधूं। सात बार फिर बाँधूं। तीन बार लोहे की तार बाँधूं। सार बाँधे हनुमन्त वीर। पाके न फूटे। तुरन्त सेखे। आदेश आदेश आदेश।”
राख लेकर उपरोक्त मन्त्र 11 बार पढ़ें और नाक का झाड़ा करें।
प्राण रक्षा तथा आरोग्य लाभ हेतु :
यदि व्यक्ति बहुत बीमार, दवा न लगे और प्राणों पर संकट हो तो निम्नलिखित मन्त्र का प्रयोग चमत्कारिक प्रभाव उत्पन्न करता है –
“तू है वीर बड़ा हनुमान। लाल लंगोटी मुख में पान। एैर भगावै।
वैर भगावै। आमुक में शक्ति जगावै। रहे इसकी काया दुर्बल।
तो माता अंजनी की आन। दुहाई गौरा पार्वती की। दुहाई राम की।
दुहाई सीता की। लै इसके पिण्ड की खबर। न रहे इसमें कोई कसर।”
इस शाबर मंत्रो का 11 बार जाप करें । प्रत्येक जप के बाद रोगी पर फूंक मारें तथा हनुमान जी की मूर्ति के चरण से सिंदूर लेकर तिलक करें । यह शाबर मंत्रो महामृत्युञ्जय मन्त्र के समान ही प्रभाव उत्पन्न करता है।
वशीकरण शाबर मंत्रो :
“माता अञ्जनी का हनुमान। मैं मनाऊं। तूँ कहना मान। पूजा दे, सिन्दूर चढ़ाऊँ। अमुक रिझाऊँ। अमुक को पाऊं। यह टीका तेरी शान का। वह आवे, मैं जब लगाऊं। नहीं आवे तो राजा राम की दुहाई। मेरा काम कर। नहीं आवे तो अञ्जनी की सेज पड़।”
रक्त चन्दन के तिलक को 11 बार अभिमंत्रित कर लगाएँ । अधिकारी वश में होंगे ।

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