सप्तमस्थ शनि जीवन में संघर्ष की सीमा तय करता है :-

कुंडली में पंचम भाव प्रेम का सप्तम भाव विवाह का माना जाता है । द्वादश भाव को शैय्या सुख का भाव माना जाता है । इन भावों में प्राय: शनि होने पर क्या प्रभाव हो सकते हैं, आइए देखें –
शनि एक पाप ग्रह माना जाता है । यदि यह सप्तमस्थ शनि है और इस पर किसी अन्य ग्रह की दृष्टि नहीं है, मंगल और बृहस्पति भी अनुकूल नहीं हैं तो उस जातक का विवाह देर से होता है, अपने से बड़ी उम्र का साथी मिलता है ।
मगर यदि सप्तमस्थ शनि किसी अन्य ग्रह के साथ हो, या शुक्र या बृहस्पति की दृष्टि में हो तो विवाह अक्सर जल्दबाजी में, कम उम्र में ही होते देखा गया है । विशेषत: यदि सप्तमस्थ शनि नीच का हो व मंगल के साथ हो, बृहस्पति से दृष्ट हो तो विवाह कम उम्र में व गलत निर्णय के रूप में फलीभूत होता है ।
यदि सप्तमस्थ शनि लग्नेश, सप्तमेश या पंचमेश होकर सप्तम, पंचम या लग्न में हो, शुभ दृष्टि में हो तो भी विवाह जल्दी होता है, प्रेम विवाह होता है और गलत निर्णय के रूप में सामने आता है ।
सप्तमस्थ शनि मुख्यत: जीवनसाथी की हीन मानसिकता का द्योतक है । कुंडली में सप्तमस्थ शनि पत्नी या पति को अहंकारी, चिड़चिड़ा व हीनता ग्रस्त बनाता है । स्वार्थ की अधिकता के कारण सतत वाद-विवाद व कलह के चलते जीवन दुखदाई हो जाता है । मगर विवाह टूटने जैसी स्थिति नहीं आती । यानी सप्तमस्थ शनि संपूर्ण जीवन क्लेश पूर्ण बनाए रखता है । यही फल व्यय के शनि के भी देखे जाते हैं । सप्तमस्थ शनि जीवनसाथी को व्यसनाधीन भी बना देता है । दुर्घटना का भी भय रहता है । प्राय: आयु के 42वें वर्ष तक यह कष्ट बना ही रहता है । सप्तमस्थ शनि नीच का हो तो यह प्रभाव उत्कट हो जाते हैं ।
अत: कुंडली में मंगल के साथ सप्तमस्थ शनि का विचार व मिलान भी करना चाहिए क्योंकि मंगल तत्काल परिणाम देकर शेष जीवन जीने के लिए मुक्त कर देता है, मगर सप्तमस्थ शनि जीवन को कलह की बेड़ियों में जकड़कर जीने को विवश करता है ।
शनि की दृष्टि सप्तम पर हो तो जीवनसाथी का रंग-रूप अच्छा नहीं होता, प्रारंभिक जीवन कष्ट में बीतता है मगर व्यसनाधीनता या वाद-विवाद कम या नहीं होता है ।सप्तमस्थ शनि उच्च का होने पर भी बुरे प्रभाव कम हो जाते हैं ।
विशेष : हालाँकि सप्तमस्थ शनि (निर्बल या नीच) पूर्व जन्म के कर्मों के प्रतिकूल परिणाम के रूप में ही होता है मगर शनि का दान, पूजन व नियमित ध्यान, इष्ट देव का स्मरण करके स्थिति को थोड़ा नियंत्रण में लाया जा सकता है ।
शनि + सूर्य – कुण्डली में शनि और सूर्य का योग बहुत शुभ नहीं माना गया है यह जीवन में संघर्ष बढ़ाने वाला योग माना गया है फलित ज्योतिष में सूर्य, शनि को परस्पर शत्रु ग्रह माना गया है कुंडली में शनि और सूर्य का योग होने पर व्यक्ति को आजीविका पक्ष में संघर्ष का सामना करना पड़ता है विशेष रूप से करियर का आरंभिक पक्ष संघर्षपूर्ण होता है और यदि शनि अंशों में सूर्य के बहुत अधिक निकट हो तो आजीविका में बार बार उत्तर चढाव रहते है, शनि और सूर्य का योग होने पर जातक को या तो पिता के सुख में कमी होती है या पिता के साथ वैचारिक मतभेद रहते हैं, यदि शनि और सूर्य का योग शुभ भाव में बन रहा हो तो ऐसे में संघर्ष के बाद सरकारी नौकरी का योग बनता है ।
शनि + चन्द्रमाँ – कुंडली में शनि और चन्द्रमाँ का योग होने पर व्यक्ति मानसिक रूप से हमेशा परेशान रहता है मानसिक अस्थिरता की स्थिति रहती है, इस योग के होने पर नकारात्मक विचार, डिप्रेशन, एंग्जायटी और अन्य साइकैट्रिकल समस्याएं उत्पन्न होती हैं व्यक्ति एकाग्रता की कमी के कारण अपने कार्यों को करने में समस्या आती है, यह योग माता के सुख में कमी या वैचारिक मतभेद भी उत्पन्न करता है पर यदि शनि चन्द्रमाँ का योग शुभ भाव में बन रहा हो तो ऐसे में विदेश यात्रा या विदेश से जुड़कर आजीविका का योग भी बनता है ।
शनि + मंगल – कुंडली में शनि मंगल का योग करियर के लिए संघर्ष देने वाला होता है करियर की स्थिरता में बहुत समय लगता है और व्यक्ति को बहुत अधिक पुरुषार्थ करने पर ही करियर में सफलता मिलती है शनि मंगल का योग व्यक्ति को तकनीकी कार्यों जैसे इंजीनियरिंग आदि में आगे ले जाता है और यह योग कुंडली के शुभ भावों में होने पर व्यक्ति पुरुषार्थ से अपनी तकनीकी प्रतिभाओं के द्वारा सफलता पाता है, शनि मंगल का योग यदि कुंडली के छटे या आठवे भाव में हो तो स्वास्थ में कष्ट उत्पन्न करता है शनि मंगल का योग विशेष रूप से पाचनतंत्र की समस्या, जॉइंट्स पेन और एक्सीडेंट जैसी समस्याएं देता है ।
शनि + बुध – शनि और बुध का योग शुभ फल देने वाला होता है कुंडली में शनि बुध एक साथ होने पर ऐसा व्यक्ति गहन अध्ययन की प्रवर्ति रखने वाला होता है और प्राचीन वस्तुओं, इतिहास और गणनात्मक विषयों में रुचि रखने वाला होता है और व्यक्ति प्रत्येक बात को तार्किक दृष्टिकोण से देखने वाला होता है, कुंडली में शनि बुध का योग व्यक्ति को बौद्धिक, गणनात्मक और वाणी से जुड़े कार्यों में सफलता दिलाता है ।
शनि + बृहस्पति – शनि और बृहस्पति के योग को बहुत अच्छा और शुभ फल देने वाला माना गया है कुंडली में शनि बृहस्पति एक साथ होने पर व्यक्ति अपने कार्य को बहुत समर्पण भाव और लगन के साथ करने वाला होता है यह योग आजीविका की दृष्टि से बहुत शुभ फल देने वाला होता है व्यक्ति अपने आजीविका क्षेत्र में सम्मान और यश तो प्राप्त करता ही है पर शनि बृहस्पति का योग होने पर व्यक्ति अपने कार्य क्षेत्र में कुछ ऐसा विशेष करता है जिससे उसकी कीर्ति बहुत बढ़ जाती है । कुंडली में शनि और बृहस्पति का योग होने पर ऐसे व्यक्ति के करियर या आजीविका की सफलता में उसके गुरु का बहुत बड़ा विशेष योगदान होता है, यह योग धार्मिक, समाजसेवा और आध्यात्मिक कार्यों से व्यक्ति को जोड़कर परमार्थ के परग पर भी ले जाता है ।
शनि + शुक्र – शनि और शुक्र का योग बहुत शुभ माना गया है कुंडली में शनि और शुक्र का योग होने पर व्यक्ति रचनात्मक या कलात्मक कार्यों से सफलता पाता है जीवन में आजीविका के द्वारा अच्छी धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, व्यक्ति विलासिता पूर्ण कार्यों से आजीविका चलाता है यदि पुरुष जातक की कुंडलीं में शनि शुक्र का योग हो तो ऐसे व्यक्तियों के जीवन में उनके विवाह के बाद विशेष उन्नति और भाग्योदय होता है तथा उनकी पत्नी जीवन निर्वाह में विशेष सहायक होती है ।
शनि + राहु – शनि और राहु का योग कुंडली में होने पर व्यक्ति चातुर्य और तर्क से अपने कार्य सिद्ध करने वाला होता है ऐसे में व्यक्ति को आकस्मिक धन प्राप्ति वाले कार्यों से लाभ होता है व्यक्ति अपनी मुख्य आजीविका से अलग भी गुप्त रूप से धन लाभ प्राप्त करता है और शुभ प्रभाव के आभाव में यह योग व्यक्ति को छल के कार्यों से भी जोड़ देता है ।
शनि + केतु – शनि और केतु का योग बहुत संघर्षपूर्ण योग माना गया है कुंडली में यदि शनि और केतु एक साथ हों तो ऐसे में व्यक्ति की आजीविका या करियर बहुत संघर्ष पूर्ण होता है व्यक्ति को पूरी मेहनत करने पर भी आपेक्षित परिणाम नहीं मिलते, कई बार व्यक्ति अपनी आजीविका का क्षेत्र बदलने पर मजबूर हो जाता है, यह योग व्यक्ति में आध्यात्मिक दृष्टिकोण भी उत्पन्न करता है, यदि कुंडली में अन्य अच्छे योग भी हों तो भी व्यक्ति के करियर की स्थिति तो अस्थिर ही बनी रहती है, शनि केतु का योग व्यक्ति को पाचनतंत्र, जोड़ो के दर्द और आंतो से जुडी समस्याएं भी देता है ।

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Acharya Pradip Kumar is renowned as one of India's foremost astrologers, combining decades of experience with profound knowledge of traditional Vedic astrology, tantra, mantra, and spiritual sciences. His analytical approach and accurate predictions have earned him a distinguished reputation among clients seeking astrological guidance.

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