नीचभंग राजयोग क्या है ?

नीचभंग राजयोग क्या है ?

नीचभंग राजयोग : ज्योतिष में आम तौर पर जब कोई प्लेनेट नीच का होता है तो उसे ख़राब माना जाता है और बाद में कभी कभी ज्योतिषी के द्वारा उसका फल ख़राब दर्शाया जाता है । लेकिन ये सब जल्दबाजी में किये गए प्रेडिक्शन है । क्योकि नीच का गृह हमेशा ख़राब ही फल देगा यह तय नहीं है । अगर किसी भी गृह का नीचत्व भंग हो ऐसी परिस्थिति में वह नीचभंग राजयोग काफी अच्छा फल भी दे सकता है । कभी कभीं नीच का गृह उच्च के गृह के सामान फल देता है । लेकिन प्रश्न यह है की किसी भी नीच के गृह का नीचत्व कैसे भंग होता है और किस परिस्थिति में नीच का ग्रह उच्च के सामान फल देता है । पहले हम कुछ नीचभंग राजयोग के नियम देखते है ।
• नीच का गृह का जिस राशि में है उस का स्वामी अगर दशवे या लग्न में स्वगृही हो तब नीचभंग राजयोग होता है ।
• नीच का गृह का जिस राशि में है उस का स्वामी कही पर उच्च का हो ।
• नीच गृह वक्री होने पर उच्च गृह जेसा फल देता है ।
• एक से अधिक गृह नीच के हो और सिर्फ एक ही गृह का नीच भंग हो तब सभी ग्रह का नीचत्व ख़तम होता है ।
• नीच गृह , नीच पति, और उच्च पति तीनो लग्न से या चन्द्र से केंद्र में हो तब भी नीचभंग राजयोग का निर्माण होता है ।
• नीच के गृह के साथ कोई उच्च का गृह बेठा हो या उस पर दृष्टि कर रहा हो तब नीचभंग राजयोग का फल मिलता है ।
• नीच का गृह नवमांश में उच्च का हो या स्वगृही हो तब नीचभंग राजयोग बनता है ।
• नीचपति और उच्चपति परस्पर केंद्र में हो, युति में हो या किसी भी प्रकार से सम्बन्ध रखते है तब नीचभंग राजयोग का निर्माण होता है ।
ऊपर दर्शाए गए सारे नियमो के आधार पर हम यह देख सकते है की कोनसा गृह नीच का होकर भी उच्च का फल दे सकता है । अब इसे कुछ एक्साम्प्ले के अधर पर समजने का प्रयत्न करते है ।
उदाहरण :
1. धनु लग्न की जन्मपत्रिका है और गुरु नीच का होकर दुसरे भाव में स्थित है और नीचपति शनि ग्यार्वे भाव में उच्च का होकर स्थित है ।
2. धनु लग्न की जन्म पत्रिका है और शुक्र यहाँ पर दशवे भाव में नीच का होकर स्थित है और गुरु भी नीच का है । शुक्र के साथ बुध उच्च का होकर स्थित है । जिसकी वजह से शुक्र का नीच भंग हुआ और गुरु नीच का होकर वक्री होने से नीच भंग हो रहा है ।

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