कहीं आपकी कुंडली में अशुभ विष योग तो नहीं !

अशुभ विष योग में एक योग है विषयोग .यह किस प्रकार बनता है एवं इसका क्या प्रभाव होता है, आइये देखते हैं।

अशुभ विष योग की स्थिति:

शनि:- धीमी गति, लंगड़ापन, शूद्रत्व, सेवक, चाकरी, पुराने घर, खपरैल, बंधन, कारावास, आयु, जीर्ण-शीर्ण अवस्था आदि का कारक ग्रह है।
चंद्रमा:- मन की चंचलता, माता, स्त्री का सहयोग, तरल पदार्थ, सुख, कोमलता, मोती, दिल से स्नेह सम्मान, आदि का कारक है।
कुण्डली में विषयोग का निर्माण शनि और चन्द्र की स्थिति के आधार पर बनता है शनि और चन्द्र की जब युति होती है तब अशुभ विषयोग बनता है लग्न में चन्द्र पर शनि की तीसरी,सातवीं अथवा दशवी दृष्टि होने पर यह योग बनता है.कर्क राशि में शनि पुष्य नक्षत्र में हो और चन्द्रमा मकर राशि में श्रवण नक्षत्र का हो और दोनों का परिवर्तन योग हो या फिर चन्द्र और शनि विपरीत स्थिति में हों और दोनों की एक दूसरे पर दृष्टि हो तब विषयोग की स्थिति बनती है.सूर्य अष्टम भाव में, चन्द्र षष्टम में और शनि द्वादश में होने पर भी इस योग का विचार किया जाता है कुण्डली में आठवें स्थान पर राहु हो और शनि मेष, कर्क, सिंह या वृश्चिक लग्न में हो तो विषयोग भोगना होता है

अशुभ विषयोग में शनि चन्द्र की युति का फल:

जिनकी कुण्डली में शनि और चन्द्र की युति प्रथम भाव में होती है वह व्यक्ति विषयोग के प्रभाव से अक्सर बीमार रहता है व्यक्ति के पारिवारिक जीवन में भी परेशानी आती रहती है ये शंकालु और वहमी प्रकृति के होते हैं
जिस व्यक्ति की कुण्डली में द्वितीय भाव में यह अशुभ विष योग बनता है पैतृक सम्पत्ति से सुख नहीं मिलता है कुटुम्बजनों के साथ इनके बहुत अच्छे सम्बन्ध नहीं रहते गले के ऊपरी भागों में इन्हें परेशानी होती है नौकरी एवं कारोबार में रूकावट और बाधाओं का सामना करना होता है
तृतीय स्थान में अशुभ विष योग सहोदरो के लिए अशुभ होता है इन्हें श्वास सम्बन्धी तकलीफ का सामना करना होता है
चतुर्थ भाव का अशुभ विष योग माता के लिए कष्टकारी होता है अगर यह योग किसी स्त्री की कुण्डली में हो तो स्तन सम्बन्धी रोग होने की संभावना रहती है जहरीले कीड़े मकोड़ों का भय रहता है एवं गृह सुख में कमी आती है
पंचम भाव में यह अशुभ विष योग संतान के लिए पीड़ादायक होता है शिक्षा पर भी इस योग का विपरीत असर होता है
षष्टम भाव में यह अशुभ विष योग मातृ पक्ष से असहयोग का संकेत होता है चोरी एवं गुप्त शत्रुओं का भय भी इस भाव में रहता है
सप्तम स्थान कुण्डली में विवाह एवं दाम्पत्य जीवन का घर होता है इस भाव मे अशुभ विष योग दाम्पत्य जीवन में उलझन और परेशानी खड़ा कर देता है पति पत्नी में से कोई एक अधिकांशत: बीमार रहता है ससुराल पक्ष से अच्छे सम्बन्ध नहीं रहते साझेदारी में व्यवसाय एवं कारोबार नुकसान देता है
अष्टम भाव में चन्द्र और शनि की युति मृत्यु के समय कष्ट का सकेत माना जाता है इस भाव में अशुभ विष योग होने पर दुर्घटना की संभावना बनी रहती है
नवम भाव का अशुभ विष योग त्वचा सम्बन्धी रोग देता है यह भाग्य में अवरोधक और कार्यों में असफलता दिलाता है
दशम भाव में यह अशुभ विष योग पिता के पक्ष से अनुकूल नहीं होता सम्पत्ति सम्बन्धी विवाद करवाता है.नौकरी में परेशानी और अधिकारियों का भय रहता है
एकादश भाव में अशुभ विष योग अंतिम समय कष्टमय रहता है और संतान से सुख नहीं मिलता है.कामयाबी और सच्चे दोस्त से व्यक्ति वंचित रहता है
द्वादश भाव में यह अशुभ विष योग निराशा, बुरी आदतों का शिकार और विलासी एवं कामी बनाता है

अशुभ विष योग के उपाय:

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी ज्योतिषी से सलाह लेकर उचित उपाय किए जाये तो ‘अशुभ विष योग’ के दु:ष्प्रभाव को कम किया जा सकता है।
1. शनैश्नीचरी अमावस की रात्रि में नीली स्याही से 10 पीपल के पत्तों पर शनि का जाप करते हुए एक-एक अक्षर लिखें :- 1. ॐ, 2. शं, 3. श, 4. नै, 5. श (यह अक्षर आधा), 6. च, 7. रा, 8. यै, 9. न, 10. मः इस प्रकार 10 पत्तो में 10 अक्षर लिख कर फिर इन पत्तो को काले धागे में माला का रूप देकर, शनि देव की प्रतिमा या शिला में चढ़ाये। तब इस क्रिया को करते समय मन ही मन शनि मंत्र का जाप भी करते रहना चाहिए।
2. पीपल के पेड़ के ठीक नीचे एक पानी वाला नारियल सिर से सात बार उतार कर फोड़ दें और नारियल को प्रसाद के रूप में बॉट दें।
3. शनिवार के दिन या शनि अमावस्या के दिन संध्या काल सूर्यास्त के पश्चात् श्री शनिदेव की प्रतिमा पर या शिला पर तेल चढ़ाए, एक दीपक तिल के तेल का जलाए दीपक में थोड़ा काला तिल एवं थोड़ा काला उड़द डाल दें। इसके पश्चात् 10 आक के पत्ते लें, और काजल में थोड़ा तिल का तेल मिला कर स्याही बना लें, और लोहे की कील के माध्यम से प्रत्येक पत्ते में नीचे लिखे मंत्र को लिखे। यह पत्ते जल में प्रवाहित कर दें।
4. प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से कम से कम पाँच माला महामृत्युन्जय मंत्र का जाप करें। इस क्रिया को शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से आरम्भ करें।
5. माता एवं पिता या अपने से उम्र में जो अधिक हो अर्थात पिता माता समान हो उनका चरण छूकर आर्षीवाद ले।
6. सुन्दर कांड का 40 पाठ करें । किसी हनुमान जी के मंदिर में या पूजा स्थान में शुद्ध घी का दीपक जलाकर पाठ करें, पाठ प्रारम्भ करने के पूर्व अपने गुरू एवं श्री हनुमान जी का आवाहन अवश्य करें।
7. श्री हनुमान जी को शुद्ध घी एवं सिन्दूर का चोला चढ़ाये श्री हनुमान जी के दाहिने पैर का सिन्दूर अपने माथे में लगाए।
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार -9438741641 (call/ whatsapp)

Acharya Pradip Kumar is renowned as one of India's foremost astrologers, combining decades of experience with profound knowledge of traditional Vedic astrology, tantra, mantra, and spiritual sciences. His analytical approach and accurate predictions have earned him a distinguished reputation among clients seeking astrological guidance.

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