“ॐ गुरु जी! काला भैरु कपिला केश,काना मदरा भगबा भेष !मार मार काली-पुत्र! बारह कोष की मार! भुता हात कलेजी गुन्हा गोडिया, जन्हा जाऊ भैरु साथ !बारह कोष की रिधि ल्याबो,चौबीस कोष की सिद्धि ल्याबो! सुति होय तो जगाय ल्याबो,बैठा होय तो उठाय ल्याबो !अनन्त केसर की भारी ल्याबो,गौरा-पार्बती की बिछिया ल्याबो !गेल्या की रस्तान मोह,कुबे की पणिहारी मोह !दुकान बैठा बाणिया मोह, घर बैठी बणियानी मोह !राजा की रजबाड मोह, महिला बैठी रानी मोह !डाकिनी को,शाकिनी को,भुतिनी को,पलीतनी को,ओपरी को, पराई को ,लाग कू, लपट कू,धूम कू,धक्का कू, पलीया कू,चौड कू,चौगट कू,काचा कू, कलबा कू,भुत कू, पलीत कू,जिन कू, राख्य्स कू,बैरियो से बरी कर दे! नजरा जड दे ताला !इत्ना भैरब नही करे,जो पिता महादेब की जटा तोड ताग्डी करे! माता पार्बती की चीर फाड लंगोट करे! चल डाकिनी-शाकिनी, चौडू मैला बाकरा, देस्यु मद की धार !भरी सभा मे छु आने मे कहा लगाई बार !खपर मे खाय, मसान मे लोटे !एसे काला भैरु की कुण पूजा मेटे ?राजा मेटे राज से जाय !प्रजा मेटे दूध-पूत से जाय! जोगी मेटे ध्यान से जाय !श्ब्द सांचा,ब्रह्मा बाचा !चलो मंत्र, ईश्वरो बाचा !”
उक्त मंत्र को सिद्ध करने के लिये इसका अनुष्ठान किसी शनिबार या रबिबार से आरम्भ करे!साधना रात्रि काल मे करे !साधना आरम्भ करते समय अपने सामने एक त्रिभुजाकार (तिकोना) पत्थर क टुकडा रखे!उसके उपर तेल ब सिंदुर का लेप करे! पान ब एक नारियल भेट चढाए !नित्यप्रति साधनाकाल मे सरसो के तेल का दीपक जलाए! यदि दीपक अनुष्ठानकाल मे अखंड जलता रहे तो अधिक उतम है! प्रतिदिन धूप दे और जप के अंन्त मे छार, छबीला, कपूर, केसर और लौंग धूप मे डाल दे !रात्रि मे निश्चित समय पर उक्त मंत्र का 21 बार जप करे !भोग मे बाक्ला-बाटी रखे !पान-सुपारी भी दे! 21 बे दिन जब भैरब जी दर्शन दे,तो भय्भीत न हो और उन्हे भक्ति-भाब से प्रणाम करके बाकला-पान-सुपारी दे !बकरे की पूरी कलेजी और एक बोतल शराब की धार दे !यदि मांस-मद्द की बली देने मे सम्रर्थ न हो ( किसी भी कारण्बश ) तो उडद के बने पकोडे, बेसन के लडडू तथा गुड मिला हुआ दूध अर्पित करे ! इस प्रकार भैरब जी सिद्ध होकर साधक को अभीष्ट सिद्धि प्रदान करेगे और साथ ही उक्त मंत्र मे उल्खीत कार्यो को पुर्ण करेगे !