Manjughosh Sadhana Kya Hai ?
मंजुघोष साधना को शिबजी का ही प्रतिरूप कहा गया है । तंत्र ग्रंथों में मंजुघोष साधना की सिद्धि के अनेक मंत्र तथा उनकी बिभिन्न साधन – बिधियों का बर्णन किया गया है । “आगमोत्तर” में मंजुघोष साधना (Manjughosh Sadhana) के निम्नालिखित मंत्र कहे गये हैं –
(१) “अ र ब च ल धीं”
यह षडक्षर मंत्र “मंजुघोष साधना” का दीपन मंत्र है ।
(२) “क्रों ह्रीं श्रीं”
यह त्रयक्षर मंत्र जड़ता नासक कहा गया है ।
(३) “ह्रीं श्रीं क्लीं:”
यह त्रयक्षर मंत्र साधक को श्रुतिधर बनाता है ।
(४) “ह्रीं”
यह एकाक्षर मंत्र साधक को सर्बज्ञाता प्रदान करने बाला है ।
Manjughosh Sadhana Vidhi :
मध्यान्ह के समय जल में भोजनोपरांत भोजन के पात्र में, ग्राम के बाह्य भाग में, गोमय (गोबर) पर, मैथुन काल में रमणी के स्तन पर तथा रात्रि के समय गोष्ठ स्थान में गो –मुंड पर इस मंत्र का साधन किया जाता है ।
उक्त बस्तुओं पर सर्बप्रथम डमरूसन्निभ यंत्र के ऊर्ध्वभाग में मंत्र के तीन बर्न तथा अधोभाग में तीन बर्ण लिखने चाहिए । यंत्र लेखन के लिए चन्दन की लकड़ी की कलम तथा अष्टगंध का उपयोग करना चाहिए । उचाटन कार्य के लिए यंत्र को गो –चर्म पर अंकित करना चाहिए ।
Manjughosh Sadhana Mantra Ka Phal :
मंजुघोष मंत्र साधन (Manjughosh Sadhana) का फल निम्नानुसार कहा गया है –
(1) जल में स्थित होकर इस मंत्र का जप करने से साधक को बिजय प्राप्त होती है ।
(2) भोजन पात्र में इस मंत्र का जप करने से साधक अत्यंत धनी होता है ।
(3) गोमय पर यंत्र को अंकित करके मंत्र का जप करने से साधक की बाक्- शक्ति बढती है ।
(4) गोष्ठ स्थान में मंत्र का जप करने से साधक को सर्बज्ञाता प्राप्त होती है ।
(5) रमणी के स्तन पर यंत्र लिखकर, मंत्र का जप करने से साधक श्रुतिधर होता है ।
(6) गोमुण्ड पर यंत्र लिखकर मंत्र का जप करने से साधक महाकबि होता है ।
बिधि बिधान से पुजनादि करके छ:लाख की संख्या में मंत्र का जप करना चाहिए । फिर घृत में सने कुंन्क पुष्पों द्वारा श्मशान स्थान अथबा कान्तर में जलती हुई अग्नि में ग्यारह सहस्त्र की संख्या में होम करना चाहिए । उक्त प्रकार से पूजा तथा पुरश्चरणदि करने पर मंत्र सिद्ध हो जाता है तथा साधक महायोगी बन सकता है ।
उक्त मंत्र की एक मास तक आरधना करने बाला साधक प्रमुख कबि होता है । दो मास तक आरधना करने बाला महाधनी होता है तथा तीन मास तक आरधना करने बाला सब शास्त्रों का ज्ञाता महापण्डित होता है ।
इस देबता की आराधना में गोमूत्र –बदरीमूल, चन्दन तथा धूलि –इन सब पदार्थो को एकत्र कर उन्हें पूर्बोक्त मंत्र से आठ बार अभिमंत्रित करके उन्हीं से ललाट पर तिलक धारण करना चाहिए ।तत्पश्चात भक्तियुक्त होकर, देबता को नमस्कार करके अभिलाषित बर देने की प्रार्थना करनी चाहिए ।
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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