चमत्कारी नारसिंह बीर साधना क्या है ?

Chamatkari Narasimha Bir Sadhana Kya Hai ?

।।Narasimha Bir Sadhana Mantra ।। –

बीर साधना मंत्र : “ओम ह्रीं ठीं ठीं ठीं ठ ठ ठ मंत्र बश्यं श्री नारसिंगो कुरु कुरु स्वाहा।।”
 
साधकों ये नारसिंह बीर साधना (Narasimha Bir Sadhana) उग्र प्रयोग है अपनी सुरक्षा का प्रबंध करके तथा अपने गले में रख्या कबच धारण करने के उपरान्त करें । सर्बप्रथम किसी बरडी बिद्या या अघोर तंत्र साधक की शरण में जाकर दीख्या प्राप्त कर लें । गुरु साधना के लिये आबश्यक ज्ञान ब बिधि प्राप्त करके गुरुदेब के द्वरा बताये गये बिधान से यह नारसिंह बीर साधना (Narasimha Bir Sadhana) करें । बिना गुरु के न करें नहीं तो मुसीबत में पड जाओगें । इस नारसिंह बीर साधना (Narasimha Bir Sadhana) को करने से पहले हनुमान सिद्धि कर लें या महाकाली तो उचित होगा । फिर ये करों यह नारसिंह बीर साधना (Narasimha Bir Sadhana) श्मशान भूमि पर नरक (काली) चौदस की रात्रि में 12 बजे की जाती है ।
 
यह (Narasimha Bir Sadhana) अघोर तंत्र की साधना है । यह नारसिंह बीर साधना सिद्धि (Narasimha Bir Sadhana Siddhi) काली चौदसी की रात्रि 11 बजे उपरान्त किसी श्मशान में बैठ कर शुरु करें । साधक सर्बप्रथम तो देशी मदिरा बोतल । एक लोहे का नुकीला सुबा, दो फुट सरीया, जो आगे (उपर) से नुकीला तेज धारी बाला हो । एक काली डोरी रील, इत्र, धूप-दीपक, बकरे की पुरी कलेजी, सबा किलो नमकीन, चटुकी भर सिन्दुर, एक लोहे का चाकू यह सामग्री साथ में ले जाये । श्मशान जाकर सबसे पहले दश-ग्यारह फुट की दूरी में एक घेरा निकालें जो गोलाकार हो । उस गोलाकार कुण्डें में आसन लगाये, उस आसन से सौ गज नाप कर उस दुरी के बिंदु पर काला डोरा (धागा) की रील लम्बी करें और उसके उपर बकरे की कलेजी लगाकर पिरोबें । कलेजी नोक पर सही लगाबे ध्यान रहे गिरे नहीं फिर साधक गोल कुण्डा (घेरे) में बैठे जाये । साधक अपने बस्त्र उतार कर नग्न (निर्बस्त) होकर नारसिंह बीर साधना मंत्र (Narasimha Bir Sadhana Mantra) जपे एबं चाकू अपने सामने या हाथ में रखें । नमकीन पास में रखें कलेजी, मदिरा सरिये के पास में रखना है । फिर साबधानी पूर्बक जप करें । घेरा रख्या मंत्र का सात बार या 21 बार जाप करते हुये निकालें या गुरु से जानकारी लेबें । अपने गले में सिद्ध किया हुआ इष्ट कबच अबश्य धारण कर लें बिना कबच के नारसिंह बीर साधना (Narasimha Bir Sadhana) शुरु न करें । अब मंत्र के समय साधक अपना मन एकाग्र रखे और उक्त नारसिंह बीर साधना (Narasimha Bir Sadhana) मंत्र का जप करते समय नाभी मेसे ओमकार ध्वनि कम्पन निकलना चाहिये । प्रयास करे अगर साधक को इसका ज्ञान नहीं होतो केबल नाभी पर इसी भाबना को ध्यान में रखकर ध्यान पुर्बक जप करें । स्वयं ही क्रिया सम्पन्न हो जायेगी । मंत्र का जप उसी भांति करें जिससे अपने आस-पास में मंत्र की ध्वनि (आबाज) गूंज उठे अर्थात् मंत्र का उचारण ब स्वर उंची आबाज में हो । जिससे अपने को उसी की धुन लग जाये बाताबरण में मंत्र का कम्पन हो । इस क्रिया के उपरांन्त आधा-पोना घण्टा या सबा घण्टे तक सुनसान रहेगा । फिर कुछ समय बाद शमशान की शक्तियां, भूत-प्रेत, आत्माये, अला-बला आदि साधक के दस-ग्यारह फुट के गोल घेरा के बाहर जाग्रत होने लगेंगी अर्थात् जाग उठेगी । फिर साधक के जप शुद्ध करने के बाद दो ढाई घण्टे बीत जाने पर बे आत्मायें चीखने-चिल्लाने लगती है । अधम मचायेगी साधक भयभीत न होकर धर्य रखें धीरे धीरे पूरे श्मशान में हाहाकार मच जायेगा । ये सभी बलाये उछल-कूद, नाच एबं उत्पात मचायेगी सारा बाताबरण भयानक ध्वनि से प्रभाबित होगा डराबना सा माहोल हो जायेगा । कई प्रकार की उल्ल्टी-सीधी आकृतियां दिखाई देगीं । भयानक रूप में शक्तिया खडी होती है और साधक पर आक्रमण करती हैं । साधक को खाउ-खाउ करती है और साधक की और छीना-झपट्टा करने की कोशिश अबश्य करती है । लेकिन साधक धर्य न खोबें । निडर होकर बैठे कयोंकी आपके कुण्डे (घेरे) में उनकी ताकत नहीं है कि बे अन्दर आपके पास नहीं आ जाये इस प्रकार शमशान जगने पर बिचलित नहीं होबें । जप चालु रखे, जब भूत-प्रेतादि भगदड मचाबें तब साधक नारसिंह बीर साधना मंत्र (Narasimha Bir Sadhana Mantra) जपते हुये अपने पास जो सबा किलो नमकीन रखा है उसमें से एक मुठा भर के अपने घेरे के बाहर चारों और फेक दें और उन शक्तियो को आदेश दें कि है भूत-प्रेतादि आत्माओ और शमशान की शक्तियो आप इधर-उधर भागा-भागी नहीं करो शान्त जायें, भागो मत तुमको श्री नारसींगा बीर दुहाई । इससे सभी बलायें ब भूत-प्रेत शांत होकर घेरे से हट जायेंगे । दुर हो जाते है । सबा तीन घण्टे बाद बन्हा पर साधक के आस-पास नगाडों की आबाज सुनाई देगि । जैसे कोई नगाडों को बजा रहा है । उस समय नारसिंह बीर साधना मंत्र (Narasimha Bir sadhana Mantra) का जाप उंचे स्वर मे करें तब नगाडों के आबज बन्द होने पर किसी शक्ति का आगमन होने जैसी ध्वनि सुनाई देगी जैसे की कोई शक्तिशाली ब बलशाली हमारी और आ रहा है और उसके कदमों के रखने से शारी शमशान भूमि हिल-डुल रही है । सारी जमीन धम-धम बज रही हैं । ऐसी आबाज सुनाई देगी और साथ में यह लगेगा की जैसे उसके पाबों में लोहे की बेडियां पहिनी हुई है । उसकी झणकार छ्नन-छ्नन सुनाई देगी । यह बाजा बीर नारसींगा का होगा । यह ध्यान रखे, अब साधक साबधान हो जाये डरे नहीं, मंत्र जपते रहे, जब बीर नारसींगा गोल घेरे के पास पहुंचेगा तब ये सारी आबाजें बन्द हो जाती है और एसा लगेगा कि जैसे कोई कुता दौड के आ रहा हैं । इसके बाद महसुस होता है कि उसे कोई हालकारता हुआ लेकर आ रहा है । ऐसी आबाज सुनाई देती है तब साधक आदर सहित भक्तिपूर्बक दोनो को हाथ जोडकर बीर नारसिंगा की जय हो जय हो जय हो तीन बार कहें । तब बीर आबाज देगा कि मेरा भोजन दो । कहा है मेरा भोजन लाओ, तब साधक नारासींगा को कहे की आप इस काली डोरी के पास जाओ बहां आगे तुम्हरा भख्यण रखा है । उसे ग्रहण करो । जब नारासींगा जी उस काली डोरी के पीछे-पीछे जायेगा तब बहाँ पर कलेजी और देशी शराब रखी है उसे देखकर उस पर झपटेगा एबं खाने के लिये दौड पडेगा । उस समय बहां पर अचानक झटका हो जायेगा और उडाम सी आबाज आयेगी । उस बक्त जब बीर काली के रास्ते जाये, रबाना होबें तब साधक तुरंत ही अपने पास रखी नमकीन का मुठा भर-भर के चारों दिशाओं मे शमशान में फेंक दें और अपने गुरु के द्वार बतये गये बिधान ब तरीके से बीर को बचनों में बांध ले । जैसा गुरु ने बतया हो उस बिधि का प्रयोग करे । तब बीर साधक को बचन देगा । यहाँ पर पूरी बिधि देना बर्जित है । यह गुरु शिष्य प्रणाली के द्वारा प्राप्त की जाती है । यहाँ केबल जानकारी हेतु प्रयोग दिया है जो पूरी बिधि नहीं है । ऐसे तो यह नारसिंह बीर साधना प्रयोग (Narasimha Bir Sadhana Prayog) देना भी नहीं चाहिये फिर भी पाठको की जानकारी के लिये यन्हा दिया गया है । यह (Narasimha Bir Sadhana) क्रिया गुरु की आज्ञा से करे । यह गुप्त नारसिंह बीर साधना प्रयोग (Narasimha Bir Sadhana Prayog) है ।
 
 
नारसिंह बीर साधना प्रयोग (Narasimha Bir Sadhana Prayog) करने बाले शाबर साधकों के प्रायोग है जो सात दिन श्मशान में बेठकर किये जाते है । अपने गुरु के साथ मे रहकर यह नारसिंह बीर साधना (Narasimha Bir Sadhana) सिद्धि प्राप्त करनी पडती है । कयोंकि नारसिंह की कोई बचों का खेलोना नहीं है जो श्मशान की दुकान में पडा है और साधक उठाकर अपने घर ले आबे । कहना और करना दोनो मे रात और दिन का अन्तर है । यह बाबन बीरों मे शक्तिशाली बीर गिना जाता है । यह बिधि बिधान से सिद्ध किया जाता है । नारसिंह बीर, समस्त कार्य के लिये उपयोग है । यह अछे-बुरे दोनो ही कार्यो को करता है । महाबीर हनुमान की भांति यह एक प्रचण्ड शक्तिशाली है । जब इसका आगमन होता है तब धरती भी कांप उठती है । जैसे जमीन के अन्दर किसी ने कोई धमाका किया हो, तुफान सा आ जाता है कई छोटे-मोटे साधको को बहा से उठाकर लाना पडता है जो या तो प्राणो से हाथ धो बैठते है या कोई मानसिक संतुलन खो देते है । जिससे जीबनभर पागल बनकर अपना जीबन बिताते है । इसलिये जब तक पुर्ण ज्ञान और नारसिंह बीर साधना (Narasimha Bir Sadhana) की बिधि एबं अनुभबी गुरु का सानिध्य प्राप्त न होबे तब तक कोई भी प्रयोग और साधना नहीं करे । क्योंकि साधकों ज्ञान है तो जहान है अर्थात् अपन जीबित ब खुश है तो कोई न कोई मार्ग अबश्य निकलेगा और हम अपनी मंजिल तक पहुंचेगे । लेकिन पागल या कुछ हो गया तो परिबार का क्या होगा, साथ ही यह भी ध्यान रखे लोभ लालच मे आकर कोइ गलत कदम न उठाबें । कभी कभी जल्ल्दबाजी मे हमारी गलती भी हो सकती है । आपने हजारो मंत्र पढी होगी, उन मे से कई मंत्र स्वयं सिद्ध भी होती है । जिसमें सिद्ध महात्माओं के प्रयोग-बिधि-बिधान साधनाये होते है । लेकिन मे आपको एक बात आज कहना चाहुंगा कि बह ज्ञान और बिधि मंत्र सभि सही है । इसमें कोई संशय या शंका नहीं है । लेकिन बह ज्ञान बह मंत्र बह बिधि बिधान किस साधक के लिये उचित है, किस साधक के लिये उसका ज्ञान लाभ करेगा आप कैसे कर पायेंगे ? तथा इनके बिधि-बिधान के मार्ग पर चलते की हिम्मत और योग्यता हमारे अन्दर है या नहीं इसका ज्ञान किस प्रकार होगा ? अगर दिये गये ज्ञान ब बिधान को समझने में कोई त्रुटि-फेरबदल , गलती आदि हो गयी तो इसका बौध साधक (स्वयं) को कैसे होगा ? उसका निर्णय साधक स्वयं नहीं कर सकता । इसका निर्णय तो बही कर पायेगा जो उस रास्ते को पार कर चुका है और उसका देखा ब परखा होगा । हम अकेले बिना किसी आधार के सही-गलत उचित-अनुचित का निर्णय नहीं कर सकते । हमे किसी न किसी के सहारे ब ज्ञान की आबश्यकता होती है । तभी कुछ हो सकता है अर्थात मेरे कहने का अर्थ यही है कि जो कार्य या साधना सिद्धि आदि करने जा रहे है । उसके लिये किसी अनुभबी योग्य साधक या गुरु की आबश्यकता होती है । गुरु भी बह होना चाहिये जिसने बह कार्य या साधनादि आपको या हमें बताने से पहले स्वयं ने की हो और सफलता भी हासिल की हो बही गुरु हमारा कल्याण ब अपनी मंजिल तक पहुंचाने के लिये उपयोगी एबं सही होता है । कयोंकी उन्होने उस मार्ग को पार किया होगा तभी तो हमको पार करबायेगे । इसलिये साधकों केबल यह पढ देने से ज्ञान प्राप्त कर देने से नहीं होगा प्रेक्टिकल ज्ञान ब अनुभब अति आबश्यक है ।

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जय माँ कामाख्या

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