यक्षिणी मंत्र : “ॐ हुं ह्रीं स्फुं श्मशान बासिणी श्मशाने स्वाहा।”
इस मंत्र की साधना श्मशान भूमि पर की जाती है । साधक रात्रि के समय निर्बस्त्र होकर चिता के पास बैठ कर की जाती है । यह साधना अमाबस्या की रात्रि 12 बजे आरम्भ करें । नित्य निशिचत संख्या मे उपरोक्त मंत्र का जाप करें तथा चार लाख की संख्या मे जप पूर्ण करें । फिर मंत्र का दशांश हबन करें तो श्मशान यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को दिब्य रसायन प्रदान करती है । जिससे साधक अदृश्य होकर पृथ्बी पर बिचरण कर सकता है । साधना के समय अपनी सुरक्षा करके जप करें एबं यक्षिणी को नैबेद्य बली आदि के लिये मांस मदिरा का प्रबंध पहले से रखें । अन्तिम दिन दर्शन देने पर भोजन बलि अर्पण करे । यह प्रयोग बिना गुरु के न करे, नहीं तो हानि हो सकती है ।
नोट : इस साधना (Shamshan Yakshini) से, यक्षिणी साधको की सभी कामना पूर्ण करती है और तुरंत कार्यो को पुरे कर देती है । यह श्मशान की शक्तियों में गिनी जाती है। चमत्कारी कार्य करती है ।
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जय माँ कामाख्या