Tantra Aur Bigyan

आज का युग बैज्ञानिक युग है । यों तो बेदों में आधुनिक बिज्ञान से कहीं ऊंचाइयों को छूने बाला तंत्र और बिज्ञान (Tantra aur Bigyan) भरा है- फिर भी हजारों बर्षो के भीतर देखने पर आज तंत्र और बिज्ञान (Tantra Aur Bigyan) ऊंचाइयों पर है ।
 
आज मानब अन्धबिश्वासी नहीं है । हर चीज को बिज्ञान के पैमाने से देखता है । तंत्र और बिज्ञान को भी ही आंख से देखने के लोग आदी हो गए हैं । बहुतों को तो तंत्र अन्धबिश्वास के सिबा और कुछ नहीं लगता है ।
 
कुछ लोग प्रशन करते है कि जब बिज्ञान ने सारे भौतिक सुख दे दिये हैं, तो तंत्र साधनाओं की आबश्यकता कया है ? ऐसे ही प्रश्न उठते हैं ।
 
तंत्र बेशेषज्ञों की और से इसका उत्तर यही है कि बिज्ञान के सभी साधन एक-दूसरे पर निर्भर है । बैज्ञानिक साधनों का उपयोग स्वतंत्र रूप से नहीं हो सकता । तंत्र साधना द्वारा स्वतंत्र रूप से सिद्धि प्राप्त की जा सकती है । बिज्ञान की सिद्धि चिरस्थायी नहीं है । तंत्र और बिज्ञान (Tantra Aur Bigyan) साधन के आभ्यान्तरिक है और यह तो सभी मानेंगे कि स्वतंत्र मार्ग श्रेष्ठ होता है । बिज्ञान का मार्ग स्वतंत्र नहीं है ।
 
बिज्ञान मनुष्य को दास बनाता है, बंधनों में कसता है ।
 
तंत्र प्रकृति के निकट लाता है, बंधनों से छुडाता है । सभी पाशों से छुटकारा पाने को प्रेरित करता है ।
 
तंत्रो के माध्यम से साधक अपनी साधना के द्वारा प्रकृति की चेतन और अचेतन सभी प्रकार की बस्तुओं में आकर्ष्ण बिकर्षण उत्पन्न करके अपने अनुकूल बना लेता है । परमाणु से महत्व तक –सबको अपने अधीन करता है । अपने अन्दर शक्ति भरता है । जो अनिष्ट तत्व है उन्हे हटता है ।
 
तंत्र बल और जप तप से मानब इतनी शक्ति प्राप्त कर सकता है, उसकी चेतना शक्ति इतनी बढ जाती है कि बडी से बडी शक्ति से सम्पन्न तत्व भी उसके बश में हो जाते हैं ।
 
तंत्र द्वारा शरीर और मन में अपार शक्ति आ सकती है जो बिज्ञान से सम्भब नहीं है । भौतिक बिज्ञान स्थुल शरीर को स्वस्थ कर सकता है किंतु हमारे सूख्य्म शरीर तक उसकी पहुच नहीं है । तंत्र सूख्य्म शरीर को भी शक्तिशाली बना सकता है । क्योंकि यह बाहरी नहीं, आन्तरिक बिज्ञान है । इस बिज्ञान (Tantra aur Bigyan) का सम्बध मन और आत्मा से है ।
 
हमारे देश में तो तंत्र बिज्ञान (Tantra Aur Bigyan) अत्यंत अन्न्त अबस्था में रहा है । हमारे ऋषि मुनियों और योगियों ने बे कार्य किये है जो आज के बैज्ञानिक भी नहीं कर सके हैं ।
 
ऋषि मह्र्षियों ने तंत्र और बिज्ञान (Tantra aur Bigyan) का बिकास अपने लिए ही नहीं, संसार के लिए किया । परोपकार की भाबना से उपयोगी रसायन सिद्ध करते थे । बे स्वर्ण बना सकते थे । भांति-भांति कि औषधियों को अभिमंत्रित करके उपचार करते थे ।
 
सृष्टि में पांच भूत अर्थात् भौतिक तत्व हैं । आकाश, बायु, जल, पृथ्वी और तेज अर्थात् अग्नि – ये पांच तत्व हैं । एक बैज्ञानिक भी इन्हीं से नई-नई बस्तुओं का निर्माण करता है । तंत्र में भी इन्हीं से सिद्धियाँ की जाती हैं । पेड, पौधे, पत्ते, शाखा, पुष्प, फल सभी साधनाओं में काम आते है, अभिमंत्रित करके उपयोग में लाये जाते हैं ।
 
इसी प्रकार पृत्वी पर एकांत नदी, तट, मुर्दघाट, बृख्यों की छाया, बन्य प्रदेश, पर्बत शिखाएं तंत्र में उपयोगी हैं ।
 
आधुनिक भौतिक बिज्ञान के लिए जो रोग असाध्य है, उन्हें तंत्र बैज्ञानिक साधारण झाडे से ठीक करते देखे गए हैं ।
 
जो उपलब्धियां भौतिक बिज्ञान से सम्भब नहीं है, उन्हे यह तंत्र सम्भब करता है ।
अत: तंत्र का महत्व कम नहीं है । बैज्ञानिक कसौटी पर भी तंत्र खरा हैं ।

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