कालसर्प योग सच या झूठ

कालसर्प योग सच या झूठ :

कालसर्प योग : आजकल कालसर्प योग की शांति के नाम पर जनता को मूर्ख बनाया जा रहा है । कालसर्प योग नाम किसी भी ग्रन्थों में लिखित में नहीं है यह तो सिर्फ राहु-केतु मध्य ग्रह के आने से कालसर्प योग नाम दिया गया है ।
राहु-केतु की संज्ञा हमने दी है शास्त्रों में सात ग्रहों को ही माना गया है । यह जिस राशि में हो उस राशि ग्रह के अनुसार ही इसका फल कथन है । अगर इसे वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो राहु उत्तरी ध्रुव को माना जाता है व केतु दक्षिणी ध्रुव को । राहु मध्य केतु कालसर्प योग इतना प्रभावी ही होता जितना केतु मध्य राहु सारे ग्रहों का आना परेशानियों का कारण बनता है । जन्मकुंडली में कालसर्प योग जिसे भी रहता है वह व्यक्ति आर्थिक, शारीरिक और मानसिक रूप से पीड़ित रहता है । यह सभी जानते हैं कि कालसर्प योग या दोष का कारण राहु और केतु होते हैं । कालसर्प योग ग्रहों की उस स्थिति को कहते हैं जब जन्म कुंडली में सारे ग्रह, राहु और केतु के मध्य फँस जाते हैं ।
माना जाता है कि पूर्ण कालसर्प योग में सभी ग्रह एक अर्धवृत्त के अंदर होने चाहिए अगर कोई ग्रह एक डिग्री भी बाहर है तो यह योग नहीं बनेगा । जहाँ अन्य ग्रह घड़ी की विपरीत दिशा में चलते हैं वहीं राहु-केतु घड़ी की दिशा में भ्रमण करते हैं । दोनों ग्रहों के बीच 180 डिग्री की दूरी बनी रहती है । राहु-केतु दो सम्पात बिन्दू हैं जो इस दीर्घवृत्त को दो भागों में बाँटते हैं । इन दो बिन्दुओं के बीच ग्रहों की उपस्थिति होने से कालसर्प योग बनता है ।
ज्योतिषाचार्य मानते हैं कि कालसर्प योग व्यक्ति को आसमान पर पहुँचाकर पुन: जमीन पर गिराने की ताकत रखता है । बहुत से लोग कालसर्प योग से डरे हुए हैं, लेकिन जंगल के खतरनाक जानवरों के बारे में जो जानते हैं वे निश्चित ही बच निकलने का रास्ता भी ढूँढ ही लेते हैं ।
छाया ग्रह : धरती पर हम धूप में खड़े हैं तो हमारी छाया भी बन रही है । इसी तरह प्रत्येक ग्रह और नक्षत्रों की छाया भी इस धरती पर पड़ती रहती है । हमारी छाया तो बहुत छोटी होती है लेकिन इन महाकाय छाया का धरती पर असर गहरा होता है ।
जैसे पीपल या बरगद के वृक्ष की छाया हमें शीतलता प्रदान करती है और नीम की छाया रोग का निदान करती है तथा बबूल की छाया में सोने से स्किन प्रॉब्लम हो सकती है उसी तरह राहु और केतु यह दो तरह की विशालकाय छायाएँ हैं । किसी का इन पर बुरा प्रभाव पड़ता है तो किसी पर अच्छा । लेकिन इस तर्क के अलावा कुछ शास्त्रीय तर्क भी दिए जाते हैं ।

कालसर्प योग का कारण :

शास्त्रों अनुसार पितृ दोष या प्रारब्ध के कारण कुंडली में कालसर्प योग बनता है । माना जाता है कि किसी व्यक्ति ने अपने पूर्वजन्म में किसी साँप या जीव को मारा या सताया हो, तो इस जन्म में उसकी कुंडली में यह योग रहता है । पूर्वजन्मों में किए गए पाप इस जन्म में व्याधियों के रूप में प्रकट होते हैं । अधिकतम कुण्डलियों में केतु मध्य राहु के ग्रहों का होना ही परेशानियों का कारण बनता है । उनको अनेक बार बाधाओं का सामना करना पड़ता है ।

कालसर्प योग का प्रभाव :

नकारात्मक प्रभाव- काला जादू, तंत्र, टोना, निशाचरी-राक्षसी कर्म आदि में लिप्त रहने वाला व्यक्ति राहु के फेर में रहता है । अचानक घटनाओं के घटने के योग राहु के कारण ही होते हैं । राहु हमारे उस ज्ञान का कारक है, जो बुद्धि के बावजूद पैदा होता है, जैसे अचानक कोई घटना देखकर कोई आयडिया आ जाना या अचानक उत्तेजित हो जाता । स्वप्न का कारक भी राहु है । भयभीत करने वाले स्वप्न आना या चमककर उठ जाना कालसर्प योग के लक्षण है । सपने में साँप, पानी, समुद्र, तालाब, आत्मा आदि देखना भी कालसर्प योग के लक्षण है । बनते कार्य का न बनना, नौकरी में बाधा, राजनीति में हो तो रूकावटों का सामना करना पड़ता है । व्यापार में हो तो रूकावटे, विवाह में परेशानी, शिक्षा के क्षेत्र में बाधा, प्रमोशन में अवरोध जैसी अनेक समस्याओं का कारण करना पड़ता है ।
यदि अचानक शरीर अकड़ने लगे या दिमाग अनावश्यक तनाव से घिर जाए और चारों तरफ अशांति ही नजर आने लगे, घबराहट जैसा होने लगे तो इन सभी का कारण भी राहु है । वैराग्य भाव या मानसिक विक्षिप्तता भी राहु के कारण ही जन्म लेते हैं । बेकार के दुश्मन पैदा होना, बेईमान या धोखेबाज बन जाना, मद्यपान करना, अति संभोग करना या सिर में चोट लग जाना यह सभी राहु के अशुभ होने की निशानी है ।
केतु का प्रभाव – संसार में दो तरह के केतु होते हैं । पहला कुछ रिश्तेदार और दूसरा कुछ जीव । रिश्तेदारों में पहला लेने वाले और दूसरा देने वाले । लेने वालों में दामाद और भाँजा तथा देने वालों में मामा और साला । दूसरे तरह के केतु जानवरों में होते हैं पहला कुत्ता जो घर की रखवाली करता है और दूसरा चूहा जो घर को कुतर कर खोखला कर देता है ।
केतु रात की नींद हराम कर देता है । धन, समृद्धि और शांति को धीरे-धीरे कुतर देता है ।। पेशाब की बीमारी, जोड़ों का दर्द, सन्तान उत्पति में रूकावट और गृह कलह का कारण भी केतु है । बच्चों से संबंधित परेशानी, बुरी हवा या अचानक धोखा होने का खतरा भी केतु के अशुम होने के कारण बना रहता है ।
सकारात्मक प्रभाव- राहु अच्छा है तो व्यक्ति दौलतमंद होगा। कल्पना शक्ति तेज होगी । राहु के अच्छा होने से व्यक्ति में श्रेष्ठ साहित्यकार, दार्शनिक, वैज्ञानिक या फिर रहस्यमय विद्याओं के गुणों का विकास होता है । इसका दूसरा पक्ष यह कि इसके अच्छा होने से राजयोग भी फलित हो सकता है । आमतौर पर पुलिस या प्रशासन में इसके लोग ज्यादा होते हैं ।
केतु का शुभ होना अर्थात् पद, प्रतिष्ठा और संतानों का सुख। यह मकान, दुकान या वाहन पर ध्वज के समान है। शुभ केतु से व्यक्ति का रूतबा कायम रहकर बढ़ता जाता है ।

कालसर्प के उपाय : –

राहु का उपाय- राहु ससुराल पक्ष का कारक है, ससुराल से बिगाड़कर नहीं चलना चाहिए । सिर पर चोटी रखना । भोजन कक्ष में ही भोजन करना राहु का उपाय है । घर में ठोस चाँदी का हाथी रख सकते हैं । सरस्वती की आराधना करें । गुरु का उपाय करें ।
केतु का उपाय- संतानें केतु हैं । इसलिए संतानों से संबंध अच्छे रखें । भगवान गणेश की आराधना करें। दोरंगी कुत्ते को रोटी खिलाएँ। कान छिदवाएँ ।

कालसर्प योग के महत्वपूर्ण उपाय-

श्राद्ध पक्ष में पितरों की तृप्ति के लिए कार्य करें । शास्त्र अनुसार महामृत्युंजय मंत्र, गायत्री मंत्र, राहु बीज मंत्र या ओम नम: शिवाय का जाप करते रहने से भी इस योग के अनिष्टकारी प्रभाव से बचा जा सकता है । नागबलि एवं नारायण बलि कर्म कराएँ ।
माथे पर चंदन का तिलक लगाएँ । कम से कम पाँच किलो अनाज को, पाँच किलो की किसी भारी वस्तु से दबाकर कम से कम 43 दिन रखें फिर उक्त अनाज को मंदिर में दान कर सकते हैं । 11 नारियल बहते पानी में बहाएँ । रसोई की पहली रोटी काले-सफेद कुत्ते, गाय और कौवों को रोटी खिलाकर ही भोजन ग्रहण करें। प्रतिदिन माता, पिता तथा गुरुजनों के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें। किसी भी प्रकार के व्यसन से दूर रहें । पीपल में जल चढ़ाते रहें। घर में समय-समय पर गुड़-घी की धूप देते रहें ।

कालसर्प योग शांति के उपाय :

जब कभी रवि पुष्य-नक्षत्र आए उस दिन सुबह नौ बजे से ग्यारह बजे के मध्य सोना आठ रत्ती, चाँदी बारह रत्ती, ताँबा सोलह रत्ती लेकर तारों से बनी गुँथी हुई अनामिका के नाप की अगूँठी बनवाकर नौ से ग्यारह के बीच शुद्ध कर धारण करें । इसके पहनने से आप खुद लाभ अनुभव करेंगे। बनी बनाई अगूँठी ना लें, स्वयं ही अपने सामने उपरोक्त नक्षत्र व समय में बनवाएँ तभी लाभ होगा अन्यथा नहीं ।
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