प्रेम एक पवित्र बंधन है मानव मात्र प्रेम के सहारे जीता है और सदैव प्रेम के लिए लालायित रहता है । प्रेम का अर्थ केवल पति –पत्नी पर प्रेम प्रेमिका के प्रेम से नहीं लिया जाना चाहिए । मनुष्य भी समाज में रहता है उसके हर मार्ग पर व्यक्ति को कितना स्नेह–प्रेम मिलेगा यह बात जन्मकुंडली भली भांति बता सकती है ।
जन्मकुंडली का पंचम भाव प्रेम भाव का प्रतिनिधित्व करता है । इसकी सबल स्थिति प्रेम की प्रचुरता को बताती ह । इस भाव (पंचम भाव) का स्वामी ग्रह यदि प्रबल हो तो जिस भाव मे स्थित होता है उसका प्रेम अवश्य मिलता है ।
पंचमेश लग्न भाव मे हो तो जातक को पूर्ण देह सुख व बूढ़ी प्राप्त होती है ।
पंचम भाव का स्वामी यदि द्वतिया भाव में होने से धन ओर परिवार का प्यार प्रेम बना रेहता है ।
पंचम भाव का स्वामी त्रतिया भाव मे होने से छोटे भाई बहिनो का प्रेम बना रहता है ।
पंचम भाव का स्वामी यदि चतुर्थ भाव में हो तो माता के प्रेम के साथ समाज का प्यार भी बना रहता है और समाज में रह कर माता–पिता का नाम रोशन कराता है ।
पंचम भाव का स्वामी यदि अपने ही घर यानि पंचम भाव में ही बेठा हो तो जातक को अपने पुत्रों का बहुत प्रेम प्राप्त होता है और पर स्त्रियों का प्यार प्रेम बना रेहता है।
पंचम भाव का स्वामी यदि सप्तम भाव यानि जाया भाव में बेठा हो तो दाम्पत्य जीवन से अत्यंत प्रेम का योग बना रहता है ।
पंचम भाव का स्वामी ग्रह नवम भाव मे बेठा हो तो जातक का भाग्य हमेशा व्यक्ति के साथ जुड़ा रहता है और ईश्वरीय शक्ति हमेशा बनी रहती है एवं पिता का स्नेह प्रेम हमेशा बना रहता है ।
पंचमेश यदि दशम भाव मे बेठा हो तो जातक के ऊपर सदैव गुरुजनों का तथा कार्य क्षेत्र मे उच्च पदा अधिकारियों का प्रेम बना रहता है ।
जन्मकुंडली में पंचमेश यदि लाभ भाव में हो तो अपने से बड़ों का प्रेम और बड़े भाई और मित्रों का प्यार प्रेम बना रहता है ।
जन्मकुंडली में पंचमेश ग्रह यदि षष्ट,अष्ट व व्यय भाव में स्थिति हो तो शरीर व प्रेम भरे रिश्तों को नुकसान पहुँचती है । और हमेशा मन को चिंतित बनाए रखते हैं ।
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार -9937207157/ 9438741641 (call/ whatsapp)