तंत्र मंत्र एबं यंत्र क्या हैं ?

तंत्र मंत्र एबं यंत्र क्या हैं ?

तंत्र मंत्र एबं यंत्र एक दुसरे के पूरक हैं । प्रत्येक तांत्रिक को कुछ मंत्र याद करने पडते है जो पूजा, उपासना और कर्म साधना में काम में लाए जाते है । बिना तंत्र मंत्र एबं यंत्र के तो कोई कार्य चल ही नहीं सकता ।
 
तंत्र-साधनाओं में प्रत्येक बस्तु को अभिमंत्रित करना पडता है; बह फूल हो, अख्यत हो या जल हो । इसलिए तांत्रिक को मांत्रिक भी होना ही चाहिए । इसी प्रकार तंत्र मंत्र एबं यंत्र की आबश्यकता तांत्रिक को पडती है । यांत्रिक को भी मंत्रो की आब्श्यकता रहती है, कयोंकी यंत्र को भी मंत्र से सिद्ध किया जाता है । यंत्र सिद्धि करने के लिए तांत्रिक क्रियाए करनी पडती है ।
 
अत: यह एक सर्बमान्य बात है कि तंत्र मंत्र एबं यंत्र एक दूसरे पर निर्भर है तथा पूरक हैं । एक के बिना दूसरा अधुरा ही है । कुछ लोग स्वयं को केबल यांत्रिक कहते है, कुछ लोग यंत्र सिद्ध बने हैं । बास्तब में बे सब केबल तांत्रिक है । कयोंकि तांत्रिक होता ही बह है जो मंत्र शास्त्री भी है तथा यंत्रों को अभिमंत्रित करने में समर्थ है ।
 
उदाहरण के लिए एक “तांत्रिक अंगूठी” है उसे कौन तैयार करता है ? यांत्रिक यह नहीं कह सकता कि इसे असने बिना तंत्र क्रियाओं के अभिमंत्रित या सिद्ध कर दिया है । तांत्रिक ने तो उसे बनाया ही “यंत्र” है ।
 
तंत्र के बिसय में तो पाठकों ने पढ लिया है । अब तंत्र मंत्र एबं यंत्र की भी संख्यिप्त जानकारी देना हम उचित समझ्ते हैं ।
 
मंत्र क्या है ?
“मंत्र” का उद्गम बेद है । बेद से प्राचीन कोई अन्य ज्ञान नहीं है । बेदों में मंत्र है । बेद मंत्रों के रचयिता ईश्वर हैं । ऋषियों के हृदय मे ईश्वर ने ज्ञान का प्रकाश किया । इस प्रकार बेद मंत्र संहिताएं ईश्वर कृत हैं । मंत्रार्थ कई ऋषियों ने किये हैं । मंत्रों का प्रयोग मनन के कारण हुआ है । कुछ ऐसे पदों, बाक्यों, शव्दों या बर्णों, जिनसे अभीष्ट या इछित कार्य सिद्ध होता है, यही “मंत्र” है ।
 
इस प्रकार मंत्र की परिभाषा इस प्रकार भी कर सकते है—
“मंत्र” उस बर्ण समुदाय को कहते है जो समस्त बिश्व के बिज्ञान की उपलब्धि, संसार के बंधनों से मुक्ति दिलाने के कार्य को उत्तम पकार से कराते है । मंत्र एक ऐसी सूख्य्म शक्ति है जो सभि देबों को बश में करती है ।
 
मंत्र चिन्तन से अन्तर्मन पर प्रभाब होता है । उसके द्वारा आत्मा में स्फुरण होता है । इससे मोख्य की प्राप्ति हो सकती है । कई बिद्वान गुरु के द्वारा किये गए संखिप्त गुप्त उपदेशों को मंत्र कहते है तो किसी ने उन अख्यर रचनाओं को मंत्र कहा है जो पठन करने से सिद्ध होते है ।
 
यंत्र क्या है ?
मंत्र में शक्तियों का नियंत्रण है।यह शक्तियों का पुंज है । साधक यंत्र से अपनी साधना उपासना के बल पर पर्याप्त शक्ति प्राप्त करता है । उनकी बृतियों को नियंत्रित करके किसी “आकार” या मंत्र में इष्ट की भक्ति भाबना करता है तो साधक का अपकार एबं उद्धार होता है ।
 
मनुष्य सदैब से दैबी शक्तियां प्राप्त करने का प्रयास करता रहा है और किया भी है । साधना उपासना से ये शक्तियां प्राप्त होती हैं । उपासना की अनेक पद्धतियां रही है । सगुण उपासना में मूर्ति पूजा और मूर्ति में भी मंत्र रूपी मूर्ति का चलन उपासकों में अधिक रहा है ।
 
यंत्रोपासना के कई प्रकार होते हैं । अपने सामने यंत्र को रखकर उसमें देबता की आह्वान आदि पद्धति से प्रतिष्ठा करते हैं और देबता को प्रसन्न करते हैं । इसी प्रकार सिद्ध किये हुए अभिमंत्रित यंत्रों को शरीर के किसी अंग पर धारण करके अपने इष्ट को प्रसन्न करते हैं और बे मनोकामना को पूर्ण करते हैं ।
 
उपर्युक्त परिभाषाओं और यंत्र मंत्र के परिचय से यह सिद्ध हो जाता है कि तंत्र साधना में मंत्र और यंत्र दोनों की आब्श्यक्ता है । ये दोनों परस्पर पूरक है और एक के बिना अन्य अधुरे हैं । तीनों (तंत्र मंत्र एबं यंत्र) को मिलाकर ही तांत्रिक सिद्धियों के लिए प्रयास किया जाता है ।

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जय माँ कामाख्या

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