दिव्यांगना अप्सरा साधना कैसे करें?

दिब्यांगना अप्सरा साधना :

दिब्यांगना अप्सरा : इस अदभुत अप्सरा की साधना दिब्य है, यह अप्रतिम सौन्दर्य की देबी है । इनका स्वरुप अति सुन्दर, छरहरा ब पुष्प की पंखुडियों के समान कोमल है । इसके शरीर से सदैब एक सुगन्ध प्रबाहित होती रहती है । जिस ब्यक्ति को अपना जीबन उत्साह, उल्लास ब सौंदर्य से परिपूर्ण करना हो, बह यह साधना अबश्य करे । दिब्यांगना अप्सरा साधना का तात्पर्य नारी शरीर को अपस्थित करके बासना पूर्ति हेतु न करके बरन् दिब्य सौन्दर्य के दर्शन और ऐश्वर्य प्राप्ति हेतु करें । इस अप्सरा के सौन्दर्य दर्शन मात्र से ब्यक्ति स्त्बध रह जाता है । इसका यौबन ब्यक्ति को चुम्बक की भांति आकर्षित करता है । यह दिब्यांगना अप्सरा साधना सम्पूर्ण होने पर साधक का स्वत: कायाकल्प होने लगता है । इसकी सिद्धि से मनचाहा द्र्ब्य, आभूषण और भौतिक संसाधन प्राप्त हो जाता है ।
 
किसी भी पूर्णिमा की रात्रि यह साधना आरम्भ की जा सकती है । साधक सुन्दर बस्त्र धारण करके साधना स्थल पर बैठ जाये । उत्साह ब उल्लास से भरे मन से साधना शुरु करें । लकडी के पटरे पर पीला बस्त्र बिछाकर उस पर पुष्प डालें । फिर प्राण प्रतिष्ठा करके “चैतन्य दिब्यांगना अप्सरा यंत्र” स्थापित करें । एक गुलाब की माला अपने गले मे डालें, एक माला यंत्र को अर्पण करें । यंत्र के समख्य घी का दीपक जला दें । धूप अगरबती से सुगन्ध दें । यंत्र का कुमकुम, अख्यत ब चन्दन से पूजन करके इत्र छिडक दें । इत्र की तीन बूंद दीपक में भी डाल दें । दीपक साधना काल में जलता रहे, इसका ध्यान रखें । मंत्र जाप हेतु दिब्यांगना अप्सरा मंत्र इस प्रकार है-
ॐ श्रीं दिब्यांगना बश्य मानाय श्रीं फट्।।
 
इस मंत्र का ५१ माला जाप निरन्तर करें । जब तक अप्सरा प्रत्यख्य न हो, प्रतिदिन ५ से ७ दिन तक यह क्रिया करें । दिब्यता प्रदान करने बाली यह दिब्यांगना प्रकट होकर साधक को मनोबांछित कर देती है ।

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जय माँ कामाख्या

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