दिव्य सर्वमंगला साधना क्या है?

दिव्य सर्वमंगला साधना क्या है?

सर्वमंगला साधना : माँ जगदम्बे को मंगल कारिणी कहा गया है, क्युकी जिस पर भगवती कि कृपा हो जाती है, उसके जीवन में सर्वत्र मंगल ही होता है । इसलिए माँ को सर्व मंगला के नाम से भी जाना जाता है । वास्तव में सर्व मंगला माता पार्वती का ही दूसरा नाम है । माँ को कई जगह पर मंगला गौरी के रूप में भी पूजा जाता है । आज भी कई प्रांतो में सुहागन स्त्रियां मंगला गौरी का व्रत रखती है और अखंड सौभाग्य कि कामना करती है । वही दूसरी तरफ गृहस्थी में पूर्ण सुख कि प्राप्ति हेतु माता पार्वती का सर्व मंगला स्वरुप साधको के मध्य प्रचलित है ।
सर्वमंगला साधना कब करनी चाहिए तथा इसके क्या लाभ है ?
जब गृहस्थी में अकारण तनाव बना हुआ हो ।
रात दिन कलह हो रहा हो ।
घर को नाना प्रकार के रोगो ने घेर लिया हो ।
हर कार्य पूरा होते होते रुक जाता हो ।
लाख परिश्रम के बाद भी प्रगति न हो पा रही हो ।
संतान विरोध पर उतारू हो ।
तब करे ये दिव्य सर्वमंगला साधना । साथ ही सर्वमंगला साधना के कई लाभ है जो पूर्ण निष्ठा से करके ही प्राप्त किये जा सकते है । मित्रो आदि शक्ति जिस पर प्रसन्न होती है, उसके लिए कुछ भी कर सकती है । परन्तु इसके लिए हमें अपने अंदर पूर्ण निष्ठा तथा समर्पण को स्थान देना होगा । साथ ही धैर्य कि अत्यंत आवश्यकता है । एक या दो दिन में हम उच्च कोटि के साधक नहीं बन सकते है, ये एक लम्बी तथा अत्यंत परिश्रम पूर्ण यात्रा है । जिसे बड़ी सजकता से पूर्ण करना होता है ।
सर्वमंगला साधना विधान :
इस सर्वमंगला साधना को आप किसी भी पूर्णिमा से आरम्भ कर सकते है । समय संध्या काल में ६ से ९ के मध्य का होगा । आपके आसन वस्त्र लाल अथवा श्वेत हो । स्नान कर पूर्व या उत्तर कि और मुख कर बैठ जाये । अपने सामने बाजोट रखे तथा उस पर उसी रंग का वस्त्र बिछाये जिस रंग के वस्त्र आपने धारण किये हो । अब बाजोट पर एक हल्दी मिश्रित अक्षत कि ढेरी बनाये । उस पर सुपारी स्थापित करे, ये सुपारी माता पार्वती का प्रतिक होगी । अब इस ढेरी आस पास एक एक ढेरी और बनाये, ये ढेरी आपको कुमकुम मिश्रित अक्षत से बनानी है । और इन दोनों पर भी एक एक सुपारी स्थापित करे । ये दोनों सुपारी माँ कि सहचरी जया तथा विजया का प्रतिक है । इसके बाद एक ढेरी काले तील कि बनाये माता पार्वती के ठीक पीछे, उस पर एक सुपारी स्थापित करे । ये सुपारी माता पार्वती के ही दूसरे स्वरुप भगवती महेश्वरी का प्रतिक है जो कि भगवान महेश्वर अर्थात शिव के ह्रदय से प्रगट होती है । माता सर्व मंगला के पीछे मूल रूप से यही महेश्वरी शक्ति कार्य करती है । तथा साधक के मनोरथ पूर्ण करती है ।
अब आप सर्व प्रथम सद्गुरु तथा गणेश पूजन संपन्न करे । इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए माता पार्वती के दाहिनी और रखी हुई सुपारी अर्थात जया शक्ति पर, कुमकुम, हल्दी तथा अक्षत अर्पण करे ..
” ॐ ह्रीं ऐं जया दैव्यै नमः”
इसके बाद माँ के बायीं और रखी सुपारी पर कुमकुम, हल्दी तथा अक्षत अर्पण करे निम्न मंत्र बोलते हुए ।
“ॐ क्लीं श्रीं क्लीं ऐं विजया शक्त्यै नमः”
इसके बाद माता महेश्वरी का तथा माता पार्वती का सामान्य पूजन करे । कुमकुम, अक्षत, हल्दी, सिंदूर, पुष्प आदि अर्पण करे । शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करे । तथा भोग में केसर मिश्रित खीर का भोग अर्पित करे ।
माँ पार्वती तथा महेश्वरी का पूजन करते समय तथा सामग्री अर्पित करते समय सतत निम्न मंत्र का जाप करते रहे…
” ॐ ह्रीं ॐ”
इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प ले कि किस मनोकामना कि पूर्ति हेतु आप ये सर्वमंगला साधना कर रहे है । तत्पश्चात निम्न मंत्र कि रुद्राक्ष माला से एक माला जाप करे …
” ॐ ह्रीं महेश्वरी ह्रीं ॐ नमः”
इसके बाद सर्वमंगला साधना मंत्र कि ११ माला जाप करे, सर्वमंगला साधना मंत्र इस प्रकार है ।
” ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं ऐं सर्वमंगला मंगल कारिणी शिवप्रिया पार्वती मंगला दैव्यै नमः”
इसके बाद पुनः एक माला महेश्वरी मंत्र कि संपन्न करे ।
मंत्र जपके पश्चात् समस्त जप माँ पार्वती के श्री चरणो में समर्पित कर दे । तथा प्रसाद पुरे परिवार में वितरित कर स्वयं भी ग्रहण करे । इसी प्रकार ये सर्वमंगला साधना आपको ७ दिवस तक करना है । अंतिम दिन घी में अनार के दाने तथा जायफल का चूर्ण मिलाकर १०८ आहुति अग्नि में प्रदान करे । इस प्रकार ७ दिवस में ये दिव्य सर्वमंगला साधना पूर्ण होती है । अगले दिन अक्षत, सुपारी, वस्त्र, आदि सभी जल में विसर्जित कर दे । सम्भव हो तो किसी कन्या को भोजन ग्रहण करवाये । और दक्षिणा दे आशीर्वाद ले । ये सम्भव न हो तो कन्या को मिठाई तथा दक्षिणा देकर आशीर्वाद ले ।
निसंदेह पूर्ण मन तथा एकग्रता से सर्वमंगला साधना करने पर माँ सर्व मंगला साधक के समस्त कष्टो का निवारण कर सुख तथा अपना आशीष प्रदान करती है ।

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जय माँ कामाख्या

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