हृदय रोग के कारण :

हृदय रोग के कारण :

ह्रदय रोग के अंतर्गत अनेक रोग आते हैं । जैसे, ह्रदय गति रुक जाना , हृदयघात ( हार्ट – अटैक ) ह्रदय के बांल्ब में छिद्र हो जाना आदि इस प्रकार के रोग है जो ह्रदय रोग के अंतर्गत आते हैं । हृदयघात बंशानुगत भी हो सकते हैं । प्राय: उंच रक्तचाप के रोगी इस रोग से पीड़ित होते हैं । रक्त को शुद्ध करने की ह्रदय की क्षमता कम होती जाती है तथा थकान का शीघ्रता से अनुभब होने लगता है । ह्रदय रोग होने के अन्य कारण चिन्ता , अधिक तनाब इत्यादि भी हैं ।

छाती में तीब्र पीड़ा होने पर हृदयघात के लक्षण स्पष्ट होते हैं । यदि बाईं भुजा से ऊपर की और बढ़ता दर्द प्रतीत होता है तो यह भी हृदयघात का ही एक प्रमुख कारण या लक्षण है । लगभग (३०) तीस मिनट तक दर्द रहता है और ऎसी अबस्था में रोगी की यदि तत्काल चिकित्सा न की जाये तो यह हानिकारक हो सकता है । इस रोग के अन्य लक्षण शरीर का शिथिल हो जाना, बमन होना, साँस लेने में कठिनाई तथा बेचैनी का अनुभब होना आदि है । इस रोग का अपचार यही है कि रोगी को फौरन चिकित्सकीय सहायता देनी चाहिये । इस रोग में रोगी को तुरन्त आराम देने के लिये कुछ बिशेष दबायें भी हैं ।

ह्रदय रोग के ज्योतिषीय सिद्धांत :

ह्रदय पर कर्क और सिंह राशियों का नियंत्रण है । चंद्रमा का भी ह्रदय पर प्रत्यक्ष प्रभाब पड़ता है । यदि राहु ,शनि और मंगल की कुदृष्टि सूर्य तथा चन्द्र पर हो तो ४० – ४५ बर्ष की आयु के बाद हृदयघात होने की आशंका होती है । अशुभ सूर्य से यदि राहु तथा मंगल का संयोग हो जाये तो नशीले अर्थात मादक पदार्थ हृदयघात के उत्पनकारी बनते हैं । सूर्य – मंगल का योग रक्त बिकारों से ह्रदय रोग उत्पन्न करने का कारक है । लग्न जल तत्व राशि में हो और उसमे मंगल, शनि एबं राहु का योग बनता हो तो ह्रदय गति अचानक रुक जाने की प्रबल संभाबना रहती है । अग्नि तत्व राशि में लग्न के होने पर प्रदूषित बाताबरण तथा ऑक्सीजन की कमी होने के कारण ह्रदय रोग हो सकता है । सूर्य और चन्द्र से दृष्ट बृहस्पती लग्न में हो तो मोटापे से ह्रदय रोग होने की संभाबना रहती है । मकर या कर्क राशि में बैठे पाप ग्रह भी ह्रदय रोग उत्पन कर सकते हैं ।

अभिमंत्रित सही मूँगा ब पुखराज धारण करें, यदि फायदा न हो तो मोती और पन्ना धारण करें, लाभ अबश्य होगा ।

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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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