अष्ट लक्ष्मी साधना विधियाँ

Ashta Laxmi Sadhana Vidhiyan :

धन सम्पदा नष्ट हो जाने, घाटा आ जाने, दिबाला निकलने या अत्यन्त गरीब हो जाने पर लक्ष्मी साधना करके श्री सिद्धि की जाती है ।
“Ashta Laxmi Sadhana” का अर्थ है आठों प्रकार की लक्ष्मीयां ।
 
1. धन लक्ष्मी
2. आयु लक्ष्मी
3. यश लक्ष्मी
4. सन्तान लक्ष्मी
5. धरा लक्ष्मी
6. दरिद्रता निबारक लक्ष्मी
7. ब्यापार लक्ष्मी
8. बाहन लक्ष्मी
 
इन आठ प्रकार की – “Ashta Laxmi Sadhana” अनुष्ठान करने के लिए पणिडतों, तांत्रिकों की आबश्यकता होती है । यह अनुष्ठान स्वयं अकेले नहीं होता है । बहुत से तांत्रिक इस अष्ट लक्ष्मी साधना (Ashta Laxmi Sadhana) अनुष्ठान को कराने के ऐबज में लोगों से बहुत धन ऐंठ लेते है जो अनुचित है ।
 
होना यह चाहिए कि आबश्यक सामान ही मंगबा लेना चाहिए । अपने लिए तो अंत में स्वेछा से दी हुई दखिणा लेनी चाहिए । अनुष्ठान कराने बाले यजमान को भी चाहिए कि बह तांत्रिक एबं पणिडतों को यथोचित सम्मान एबं दखिणा प्रदान करे ।
 
अष्ट लक्ष्मी साधना (Ashta Laxmi Sadhana) में ग्यारह कलश स्थापित करने पडते है और आठ छोटे छोटे तख्तों पर आठ यंत्र बनाये जाते है । यंत्र चाबलों से ही बनाए जाते हैं। यंत्रों के नाम इस प्रकार होते है…
1. श्री यंत्र
2. लक्ष्मी यंत्र
3. ऐश्वर्य यंत्र
4. कनकधारा यंत्र
5. कुबेर यंत्र
6. घटाकरण यंत्र
7. बरदा यंत्र
8. स्थायित्व यंत्र
 
आठों ही यंत्रों पर अष्टलक्ष्मी की अलग-अलग प्रतिमाएं चांदी की बनबाकर स्थापित करते हैं । तांत्रिक यंत्रों की पूजा और उन्हें अभिमंत्रित करता है । कनक धारा मंत्र को अभिमंत्रित करने और जप – अनुष्ठान करने के लिए एक, दो या तीन पणिड हो सकते है । शेष के लिए एक एक ही बहुत हैं इस प्रकार दस-ग्यारह पणिड होते है जो अलग अलग मंत्रों के जाप करते हैं ।
 
“कनकधारा” प्रमुख लक्ष्मी सिद्धि की देबी है, इसी को सिद्ध करना सर्ब श्रेष्ठ और अत्यंत आबश्यक होता है ।
 
पूजन, अभिमंत्रण के साथ ही संकल्प किया जाता है । संकल्प इस प्रकार है…..
“ॐ बिष्णु-बिष्णु तत्षद मम सकल बिध बिजयश्री सुख-शांति, धन-धान्य यश पुत्र प्राप्तये स्मज्जन्म जन्मान्तरीय कुलार्जित संचित महादुख दारिद्रयतादि शांन्तये कनकधारा यंत्रपूजनमहं करिष्ये ।”
 
इस संकल्प के पश्चात् कनकधारा बिनियोग मंत्र होता है । अलग-अलग लक्ष्मीयों से सम्बन्धित बिनियोग भी अलग-अलग होते हैं, अलग-अलग पणिडत अलग-अलग बिनियोग मंत्र बोलते है । बे मंत्र होठों में ही बोलते हैं । अलग –अलग यंत्रों के सामने अलग-अलग पणिड बैठते है और बे अनुष्ठान सम्प्न्न करते हैं ।
 
यंहा हम कनक्धारा के सम्बध में लिख रहा हैं । यह Ashta Laxmi Sadhana अनुष्ठान श्रेष्ठ तांत्रिक से कराये जो अष्टलक्ष्मी अनुष्ठान कराना जानता हो । “कनकधारा” की भांति अन्य यंत्रों के भी सब बिनियोग, ध्यान और मंत्र होते हैं ।
 
कनकधारा बिनियोग इस प्रकार है—
“ॐ अस्य श्री कनकधारा यंत्र मंत्रस्य श्री आचार्य श्री शंकर भगबत्पाद ऋषि: श्री भूबनेश्वरी ऐश्वर्यदात्रि, महालक्ष्मी देबता श्री बीज ह्रीं शक्ति, श्री बिद्या: रजोगुण, रसनाज्ञानेन्द्रियं रसबाक कर्मोन्द्रियं मध्यमं स्वरं द्र्ब्य तत्वं बिद्या कला ऐं कीलनंबू उत्कलनं प्रबाहिनी संचयमुद्रा ममखेमस्थेर्यायुरोग्याभि बृद्धयर्थ च नमोयुक्त बागबीज स्वबीज लोम-बिलोम पुटितोक्त त्रिभुबन भूतिकरी प्रसीद महाम्माला मंत्रजपे बिनियोग: ।”
 
यह कनकधारा बिनियोग है । अन्य यंत्रों के बिनियोग मंत्र अलग हैं । कनकधारा ध्यान निम्नलिखित है—सरसिज निलये सरोज हस्ते
धबल तमांशुकगन्धामाल शोभे
भगबति हरि बल्ल्भे मनोज्ञे
त्रिभुबन भुति करि प्रसीद मह्यम ।
अब कनकधारा मंत्र लिखते हैं——
 
कनक्धारा मंत्र : “ॐ बं श्रीं बं ऐं ह्रीं श्री क्लीं कनकधाराये स्वहा ।”
आठों दिनों तक यह जप –अनुष्ठान होता है और नबें दिन हबन यज्ञ होता है । यह यज्ञ तांत्रिक की देख रेख में होता है । इसमें बिशेष प्रकार के मंत्रों से सामग्री आहुतियां देते है । पर्याप्त सामग्री और घृत यज्ञ में ब्यब करना चाहिए ।
 
यज्ञ भलीभांति सम्पन्न होने पर अनुष्ठान पूरा हो जाता है । इस अनुष्ठान और यज्ञ का फुल अत्यंन्त उपयोगी रहता है । धन-धान्य और ब्यापार में उन्नति होती है, घर में लक्ष्मी की बृद्धि होती है ।
 
अष्ट लक्ष्मी यंत्र बनबाकर आप अपनी दूकान, कार्यालय अथबा घर में लगा सकते है । इस प्रकार तंत्र की इस साधना से आप पूर्ण लाभ उठा सकते हैं ।

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जय माँ कामाख्या

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