Ashta Yakshini Sadhana Kya Hai ?
बहुत से लोग अष्ट यक्षिणी साधना (Ashta Yakshini Sadhana) का नाम सुनते ही डर जाते हैं कि ये बहुत भयानक होती हैं, किसी चुडैल कि तरह, किसी प्रेतानी कि तरह, मगर ये सब मन के वहम हैं । यक्षिणी साधक के समक्ष एक बहुत ही सौम्य और सुन्दर स्त्री के रूप में प्रस्तुत होती है । देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर स्वयं भी यक्ष जाती के ही हैं । यक्षिणी तो प्रायः कई अर्थों में एक सामान्य स्त्री से श्रेष्ठ स्त्री होती है ।
‘अष्ट यक्षिणी साधना (Ashta Yakshini Sadhana’ में ये प्रमुख यक्षिणियां है -1. सुर सुन्दरी यक्षिणी २. मनोहारिणी यक्षिणी 3. कनकावती यक्षिणी 4. कामेश्वरी यक्षिणी5. रतिप्रिया यक्षिणी 6. पद्मिनी यक्षिणी 6. नटी यक्षिणी 8. अनुरागिणी यक्षिणी प्रत्येक यक्षिणी साधक को अलग-अलग प्रकार से सहयोगिनी होती है, अतः साधक को चाहिए कि वह अष्ट यक्षिणी साधना (Ashta Yakshini Sadhana) से आठों यक्षिणियों को ही सिद्ध कर लें ।
सुर सुन्दरी यक्षिणी ……..यह सुडौल देहयष्टि, आकर्षक चेहरा, दिव्य आभा लिये हुए, नाजुकता से भरी हुई है । देव योनी केसमान सुन्दर होने से कारण इसे सुर सुन्दरी यक्षिणी कहा गया है । सुर सुन्दरी कि विशेषता है, कि साधक उसे जिस रूप में पाना चाहता हैं, वह प्राप्त होता ही है – चाहे वह माँ का स्वरूप हो, चाहे वह बहन का या पत्नी का, या प्रेमिका का। यह यक्षिणी सिद्ध होने के पश्चात साधक को ऐश्वर्य, धन, संपत्ति आदि प्रदान करती है ।
मनोहारिणी यक्षिणी………….अण्डाकार चेहरा, हरिण के समान नेत्र, गौर वर्णीय, चंदन कि सुगंध से आपूरित मनोहारिणी यक्षिणी सिद्ध होने के पश्चात साधक के व्यक्तित्व को ऐसा सम्मोहन बना देती है, कि वह कोई भी, चाहे वह पुरूष हो या स्त्री, उसके सम्मोहन पाश में बंध ही जाता है । वह साधक को धन आदि प्रदान कर उसे संतुष्ट कराती है ।
कनकावती यक्षिणी………….रक्त वस्त्र धारण कि हुई, मुग्ध करने वाली और अनिन्द्य सौन्दर्य कि स्वामिनी, षोडश वर्षीया, बाला स्वरूपा कनकावती यक्षिणी है । कनकावती यक्षिणी को सिद्ध करने के पश्चात साधकमें तेजस्विता तथा प्रखरता आ जाती है, फिर वह विरोधी को भी मोहित करने कि क्षमता प्राप्त कर लेता है । यह साधक की प्रत्येक मनोकामना को पूर्ण करने मे सहायक होती है ।
कामेश्वरी यक्षिणी…………..सदैव चंचल रहने वाली, उद्दाम यौवन युक्त, जिससे मादकता छलकती हुई बिम्बित होती है । साधक काहर क्षण मनोरंजन करती है कामेश्वरी यक्षिणी । यह साधक को पौरुष प्रदान करती है तथा पत्नी सुख कि कामना करने पर पूर्ण पत्निवत रूप में साधक कि कामना करती है । साधक को जब भी द्रव्यकि आवश्यकता होती है, वह तत्क्षण उपलब्ध कराने में सहायक होती है ।
रति प्रिया यक्षिणी……………..स्वर्ण के समान देह से युक्त, सभी मंगल आभूषणों से सुसज्जित, प्रफुल्लता प्रदान करने वाली है रति प्रिया यक्षिणी । रति प्रिया यक्षिणी साधक को हर क्षण प्रफुल्लित रखती है तथा उसे दृढ़ता भी प्रदान करती है । साधक और साधिका यदि संयमित होकर इस साधना को संपन्न कर लें तो निश्चय ही उन्हें कामदेव और रति के समान सौन्दर्य कि उपलब्धि होती है ।
पदमिनी यक्षिणी…………………कमल के समान कोमल, श्यामवर्णा, उन्नत स्तन, अधरों पर सदैव मुस्कान खेलती रहती है, तथा इसकेनेत्र अत्यधिक सुन्दर है । पद्मिनी यक्षिणी साधना साधक को अपना सान्निध्य नित्य प्रदान करती है । इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि यह अपने साधक में आत्मविश्वास व स्थिरता प्रदान कराती है तथा सदैव उसे मानसिक बल प्रदान करती हुई उन्नति कि और अग्रसर करती है ।
नटी यक्षिणी…………………..नटी यक्षिणी को ‘विश्वामित्र’ ने भी सिद्ध किया था। यह अपने साधक कि पूर्ण रूप से सुरक्षा करती है तथा किसी भी प्रकार कि विपरीत परिस्थितियों में साधक को सरलता पूर्वक निष्कलंक बचाती है ।
अनुरागिणी यक्षिणी…………………..अनुरागिणी यक्षिणी शुभ्रवर्णा है । साधक पर प्रसन्न होने पर उसे नित्य धन, मान, यश आदि प्रदान करती है तथा साधक की इच्छा होने पर उसके साथ उल्लास करती है ।
अष्ट यक्षिणी साधना (Ashta Yakshini Sadhana) को संपन्न करने वाले साधक को यह साधना अत्यन्त संयमित होकर करनी चाहिए । समूर्ण अष्ट यक्षिणी साधना (Ashta yakshini Sadhana) काल में ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है । साधक यह साधना करने से पूर्व यदि सम्भव हो तो ‘अष्ट यक्षिणी दीक्षा’ भी लें। साधना काल में मांस, मदिरा का सेवन नकरें तथा मानसिक रूप से निरंतर गुरु मंत्र का जप करते रहे। यह अष्ट यक्षिणी साधना (Ashta Yakshini Sadhana) रात्रिकाल में ही संपन्न करें । साधनात्मक अनुभवों की चर्चा किसी से भी नहीं करें, न ही किसी अन्य को साधना विषय में बतायें । निश्चय ही यह साधना साधक के जीवन में भौतिक पक्ष को पूर्ण करने मे अत्यन्त सहायक होगी, क्योंकि अष्ट यक्षिणी साधना (Ashta Yakshini Sadhana) सिद्ध साधक को जीवन में कभी भी निराशा या हार का सामना नहीं करना पड़ता है । वह अपने क्षेत्र में अद्वितीयता प्राप्त करता ही है ।
Ashta Yakshini Sadhana Vidhan :
आवश्यक सामग्री है – ८ अष्टाक्ष गुटिकाएं तथा अष्ट यक्षिणी साधना (Ashta Yakshini Sadhana) सिद्ध यंत्र एवं’ यक्षिणी माला’। साधक यह अष्ट यक्षिणी साधना (Ashta Yakshini Sadhana) किसी भी शुक्रवार को प्रारम्भ कर सकता है । यह तीन दिन की साधना है । लकड़ी के बजोट पर सफेद वस्त्र बिछायें तथा उस पर कुंकुम से यंत्र बनाएं । फिर उपरोक्त प्रकार से रेखांकित यंत्र में जहां ‘ह्रीं’ बीज अंकित है वहां एक-एक अष्टाक्षगुटिका स्थापित करें । फिर अष्ट यक्षिणी का ध्यान कर प्रत्येक गुटिका का पूजन कुंकूम, पुष्प तथा अक्षत से करें । धुप तथा दीप लगाएं । फिर यक्षिणी से निम्न मूल मंत्र की एक माला मंत्र जप करें, फिर क्रमानुसार दिए गए हुए आठों यक्षिणियों के मंत्रों की एक-एक माला जप करें । प्रत्येक यक्षिणी मंत्र की एक माला जप करने से पूर्व तथा बाद में मूल मंत्र की एक माला मंत्र जप करें । उदाहरणार्थ पहले मूल मंत्र की एक माला जप करें, फिर सुर-सुन्दरी यक्षिणी मंत्र की एक माला मंत्र जप करें, फिर मूल मंत्र की एक माला मंत्र जप करें, फिर क्रमशः प्रत्येक यक्षिणी से सम्बन्धित मंत्र का जप करना है । ऐसा तीन दिन तक नित्य करें ।
मूल अष्ट यक्षिणी मंत्र- ॥ ॐ ऐं श्रीं अष्ट यक्षिणी सिद्धिं सिद्धिं देहि नमः ॥
सुर सुन्दरी मंत्र ॥ ॐ ऐं ह्रीं आगच्छ सुर सुन्दरी स्वाहा ॥
मनोहारिणी मंत्र ॥ ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारी स्वाहा ॥
कनकावती मंत्र ॥ ॐ ह्रीं हूं रक्ष कर्मणि आगच्छ कनकावती स्वाहा ॥
कामेश्वरी मंत्र ॥ ॐ क्रीं कामेश्वरी वश्य प्रियाय क्रीं ॐ ॥
रति प्रिया मंत्र ॥ ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ रति प्रिया स्वाहा ॥
पद्मिनी मंत्र ॥ ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ पद्मिनी स्वाहा ॥
नटी मंत्र ॥ ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ नटी स्वाहा ॥
अनुरागिणी मंत्र ॥ ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ स्वाहा ॥
मंत्र जप समाप्ति पर साधक साधना कक्ष में ही सोयें। अगले दिन पुनः इसी प्रकार से साधना संपन्न करें, तीसरे दिन साधना सामग्री सबको जिस वस्त्र पर यंत्र बनाया है, उसी में बांध कर नदी में प्रवाहित कर दें ।
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