सिद्धि प्राप्ति हेतु काली कुल्लुकादि मंत्र

Siddhi Prapti Hetu Kali Kullukaadi Mantra :

इष्टसिद्धि हेतु इष्टदेबता के “कुल्लुकादि मंत्र ” का जप अत्यंत्य आबश्यक हैं । दश महाबिद्याओं के कुल्लुकादि अलग अलग है । काली कुल्लुकादि मंत्र (Kali Kullukaadi Mantra) इस प्रकार हैं –

Kali Kullukaadi Mantra :

मंत्र : “क्रीं, हूँ, स्त्री, ह्रीं, फट् यह पंचाक्षरी मंत्र हैं ।”

 
मूलमंत्र से षडड्ग़न्यास करके शिर में १२ बार कुल्लुका मंत्र (Kali Kullukaadi Mantra) का जप करे ।
सेतु :- “ॐ” इस मंत्र को १२ बार हृदय में जपे। ब्राह्मण एबं क्षत्रियों का सेतु मंत्र “ॐ” हैं । बैश्यों के लिये “फट्” तथा शूद्रों के लिये “ह्रीं” सेतु मंत्र हैं। इसका १२ बार हृदय में जप करें ।
 
महासेतु : “क्रीं” इस महासेतु मंत्र को कण्ठस्थान में १२ बार जप करें ।
 
निर्बाण जप : मणिपूरचक्र (नाभि) में ॐ अं पश्चात् मूलमंत्र के बाद ऐं अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋं लृं लृं एं ऐ ओ औ अं अ: कं खं गं घं डं चं छं जं झं जं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं बं शं षं सं हं लं ख्यं ॐ का जप करे ।
 
पश्चात् “कलीं” बीज को स्वाधिष्ठान चक्र में १२ बार जप करें ।
 
इसके बाद : “ॐ” ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं रां रीं रुं रें रौं रं: रमल बरयुं राकिनी मां रक्ष रक्ष मम सर्बधातून् रक्ष रक्ष सर्बसत्व बशडकरि देबि ! आगछागछ इमां पूजां गृह गृह ऐं घोरे देबि !घोरे देबि ! ह्रीं स: परम घोरे घोर स्वरुपे एहि एहि नमश्चामुण्डे डरलकसहै श्री दक्षिण कालिके देबि बरदे बिद्दे ।”
 
इस मंत्र का “शिर” में द्वादश बार जप करे। इसके बाद “महाकुण्डालिनी” का ध्यान कर इष्टमंत्र का जप करना चाहिये । मंत्र सिद्धि के लिये मंत्र के दश संस्कार भी आबश्यक हैं ।
 
जननं जीबनं पश्चात् ताडनं बोधनं तथा।
अथाभिषेको बिमलीकरणाप्यायनं पुन: ।
तर्पणं दीपनं गुप्तिर्दशैता: मंत्र संस्क्रिया: ।।

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