कपाल साधना विधि

Kapal Sadhana Vidhi :

कपाल साधना का अर्थ है मनुष्य की खोपडी/ मृत मनुष्य की खोपडी का ऊपरी हिस्सा कपाल है उसमें जीब की बृति शेष रहती है उसी की साधना की जाती है तो खोपडी सिद्ध हो जाती है और तमाम कार्य करती है । औघड तथा अघोरी लोग कपालपात्र का प्रयोग करते हैं ।

Kapal Sadhana Ka Parichay :

कपाल साधना श्मशान/ मरघट साधना जैसी ही उग्र और भयानक साधना है । चाहे आसन के नीचे कपाल हों अथबा सामने । जब काली रातों में आपस में कडकडाकर हुकारतें हैं तो भय स्वाभाबिक ही होता है ।

Kapal Sadhana Ka Phal :

कपाल साधक का सामर्थ इतना होता है कि छोटे राज्य की पूरी सता पलटबा सकता है । धन के तहखाने खुलबा सकतासकता है। भुमिगत धन मगंबा सकता है । नगर के नगर उजाड सकता है । किन्तु इसके लिए शर्त यह है कि बे पांचों कपाल योद्धाओं के हों, जो युद्ध में मरे हों। उन्हें लाकर सिद्ध करें ।
साधना स्थल : साधना स्थल बट वृक्ष के नीचे, शांत निर्जन बन ही इसके लिए अपयुक्त होता है, रात बहीं रहना पडता है । कई बार साधना तीन माह से छह माह तक समय ले लेती है । अत: धैर्य रखना चाहिए ।

Kapal Sadhana Ka Bhed : 

कपाल साधना दो प्रकार की मुख्यत: होती है । एक तो ताजे मुर्दे का सिर गरदन से काट लाबें उसकी। दूसरी श्मशान से कपाल उठा लाबें, उसकी । हमेशा पांच से कम कपालों की साधना एक साथ न करें चूंकि इससे जीबन का ब्यतिक्रम हो सकता है ।

Kapal Sadhana Ka Bidhan :

पांच ताजे मुर्दे के सिर लाकर पृथ्बी में एक हाथ का चौडा चतुर्भूज बनाएं।चार कोनों में और एक सिर बीच में गाडें एक हाथ नीचे फिर मिट्टी से भर के लीप देबें गोबर से । उस पर भैंसे के चमडे पर बैठकर कम्बल डाल बैठकर साधना ३१ दिन तक करें । सूखे कपाल को आसन के सामने एक हाथ के चतुर्भूज में रखें । बैसे ही पांचों रख उन्हें पूजें ।

Kapal Sadhana Mantra : 

मंत्र : “ॐ नमो: कपालेश्वर कपाल सिद्धि मे कुरूते नम: ।।”

Kapal Sadhana Vidhi :

सायंकाल सारी ब्यबस्था निर्जन में करके बट वृक्ष के नीचे बैठकर कपालेश्वर शिब जी की पूजा करें और फिर उपरोक्त मंत्र का ५००० जप ३१ दिन करें तो पांचो कपाल एक –एक करके बोलते जाते हैं । बैसे ही सिद्ध होते जाते हैं । समय कम – ज्यादा भी लग सकता हैं ।

साधना के पश्चात् : साधनाकाल में धूपदीप, भोग में मिठाई और जल तथा मदिरा कपालेश्वर को दें तथा पांचों कपालों को भी नित्य दें । साधना के बाद बहुत संयम से रहें किसी का अनिष्ट ना ही करें तो अछा है । अन्यथा साधना खण्डित होती है और कष्ट बढते जाते हैं ।

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