Panchmakar Sadhana Se Moksh Praapti Ka Marg : Aghor
अघोरी शब्द सुनते ही आंखों के सामने एक नंग-धड़ंग भयावह दिखने वाले साधु का चेहरा आंखों के सामने साकार हो उठता है । अपनी छवि के अनुरूप ही अघोरियों की पूजा तथा धार्मिक क्रिया कलाप होते हैं । ये अपनी पूजा पद्धति में पंच मकार साधना (Panchmakar Sadhana) (मद्य, मांस, मछली, मुद्रा, मैथुन) का इस्तेमाल कर मोक्ष प्राप्त करते हैं ।
अघोर शब्द का अर्थ होता है जो घोर न हो, जो मृदु और सौम्य हो । अघोरियों के क्रिया-कलाप भले ही हमें भयावह दिखते हों परन्तु इनका मन बालकों की तरह अत्यन्त सौम्य और शांत होता है । यह अलग बात है कि ये अपने आप को दुनिया से दूर रखने के लिए भयावह रूप धर लेते हैं । अक्सर इन्हें अपने शरीर पर मुर्दे की भस्म रमाए कि सी श्मशान या निर्जन स्थान पर तप करते देखा जा सकता है । कहा जाता है कि ये ह्रदय के इतने सौम्य होते हैं कि पेड़ों से पत्ते या फूल तक नहीं तोड़ते कि पेड़ों को कष्ट होगा परन्तु ये इतने कठोर भी होते हैं कि मुर्दा आदमी को खाने में भी इन्हें हर्ज नहीं होता। माना जाता है कि श्मशान में रहते हुए इन्हें मृत्यु से स्नेह हो जाता है । इनके लिए अंधेरा ही उजाला बन जाता है ।
अघोरी अपने वचन के पक्के होते हैं। एक बार ये किसी बात को ठान लें तो फिर भगवान भी इनकी इच्छा नहीं बदल सकता। हालांकि ये संसार से दूर रहते हैं परन्तु यदि कोई व्यक्ति इन्हें अच्छा लगे तो ये उसे रंक से राजा बनाने में देर नहीं लगाते। अघोरी बनना इतना सहज भी नहीं होता कि हर कोई बन सके। इसके लिए पहले कड़ी साधना करनी होती है। गुरू के सामने अपने को साधना और कई अलग अलग परीक्षा से खुद को सिद्ध करना होता है । साधक की पूरी तरह से परीक्षा लेने और संतुष्ट होने के बाद ही गुरू उसे अघोरी बनाते हैं। यही कारण है कि आज तक किसी भी अघोरी पर कोई आपराधिक केस दर्ज नहीं हुआ । यदि कोई आपराधिक चरित्र का व्यक्ति अघोरी बनना चाहे तो यह न केवल उसके लिए असंभव होगा बल्कि पता चल जाने पर उसे मृत्यु से भी बुरे शाप का सामना करना पड़ता है।
अघोरियों द्वारा पंचमकार साधना (Panchmakar Sadhana) की जाती है। इस साधना में मांस, मछली, मद्य (शराब), मुद्रा और मैथुन का प्रयोग होता है । कुछ अघोरी इनका (Panchmakar Sadhana) सांकेतिक रूप से प्रयोग करते हैं तो कुछ इनका (Panchmakar Sadhana) प्रत्यक्ष उपयोग कर सिदि्धयां और मुक्ति प्राप्त करते हैं । माना जाता है कि इन पंच मकारों (Panchmakar Sadhana) के प्रयोग से व्यक्ति बड़ी ही सहजता से आत्मा के आवागमन के चक्र को तोड़ देता है जिससे उसकी मुक्ति का द्वार खुल जाता है । वास्तव में यह पंचमकर साधना (Panchmakar Sadhana) एक बेहद कठिन रास्ता है जिस पर हर कोई नहीं चल पाता। इस रास्ते पर व्यक्ति भोग करता है, लेकिन अपनी इच्छा और आत्मा को भोग में लिप्त नहीं होने देता। माना जाता है कि भोग की इच्छा का पैदा होना मात्र भी व्यक्ति के आध्यात्मिक जीवन का अंत है ।
पातंजल योग प्रदीप में कहा गया है कि अपनी जिव्हा अर्थात वाणी और भोग की इच्छा पर अधिकार करना ही मांस का भक्षण करना है । इसी तरह रात और दिन लगातार मानव शरीर में आती-जाती श्वास पर अधिकार करना मछली भक्षण है। अपनी आत्मा को परमात्मा में विलीन होने पर जो रस मिलता है उस रस का पान करना मद्यपान करना है जबकि अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा और शक्ति बढ़ाने के लिए हाथों का इस्तेमाल करना मुद्रा कहलाता है । मैथुन के भी लौकिक और परालौकिक दोनों शब्दार्थ हैं। सांसारिक मैथुन में जहां स्त्री और पुरुष मिलते हैं, वहीं आध्यात्मिक मैथुन में कुंडलिनी रूप पार्वती सहस्त्रार चक्र रूपी शिव से मिलती है । यह मैथुन आदमी के अंदर ही घटित होता है, इसका अनुभव आंतरिक रूप से ही किया जाता है ।
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जय माँ कामाख्या