Sri Durga Saptashati Argala Stotra Prayog Kaise Karen ?
अर्गला स्तोत्र मंत्र : “रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि”
इस (अर्ध) श्लोक (Sri Durga saptashati Argala Stotra) मंत्र से सम्पुटित करके श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ का भी बिधान है । प्राय: लोग इस श्लोक को इसी भांति सम्पुट रूप से प्रयोग करते हुए चंडी पाठ भी करते हैं । किन्तु तंत्र शास्त्र अत्यंत ही गोपनीय है । इसके रहस्यों का सूक्ष्म ज्ञान गुरु चरणों की कृपा एबं भगबती के आशीर्बाद से ही प्राप्त होता है ।
Sri Durga Saptashati Argala Stotra Prayog :
“रूपं देहि” इत्यादि द्वारा सम्पुटित पाठ करने की अत्यंत गोपनीय बिधि को प्रथम बार तंत्र साधकों (पाठकों) के समक्ष उद्घाटित किया जा रहा है –
रूपं देहि – मन्मथ बीज –(कामदेब का रूप सर्ब सम्मोहक है) –“क्लीं”
जयं देहि – महाकाल को भी ग्रास बना लेने बाली काली ही अजेय है, अत: काली बीज – “क्रीं”
यशो देहि – त्रिभुबन पालिनी भुबनेश्वरी की कृपा से ही यश प्राप्ति सम्भब है, अत: भुबनेश्वरी बीज –“ह्रीं”
द्विषो जहि – बाग़देबी सरस्वती जी की कृपा से ही आज्ञानान्ध्कार बिनष्ट होकर चित से द्वेष भाब का क्षरण होता है, अत: बाग़बीज – “ऐ”
इस प्रकार उद्धरित मंत्र – “क्लीं क्रीं ह्रीं ऐ”
इन चतुर्बीजों से सम्पुटित चंडी पाठ से साधक को चमत्कारित लाभ, भगबती की कृपा से प्राप्त होता है । “रूपं देहि” इत्यादि द्वारा सम्पुटित पाठ करने का बास्तबिक स्वरुप यही है ।
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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