स्वयं सिद्ध मंत्र साधनाए

Grih Raksha Swayam Siddh Mantra :
गाय का गोबर या लाल रंग का घोल लेकर उक्त स्वयं सिद्ध मंत्र (Swayam Siddh Mantra) से १०८ बार पढ़कर अभिमंत्रित कर लें फिर इसी स्वयं सिद्ध मंत्र (Swayam Siddh Mantra) को पढ़ते हुए घर के चारों ओर रेखा खींच दें । ऐसा कर देने से घर में भूत, पिशाच, चोर डाकू के घुसने का भय नहीं रहता । साथ ही हिंसक जंतु, अग्नि भय से भी सुरक्षित रहा जा सकता हैं ।
मंत्र- “ ॐ ह्रीं चण्डे ! चामुण्डे भ्रुकुटि अट्टा ट्टे,भीम दर्शने! रक्ष रक्ष चौरेभ्यः वज्रेभ्यः अग्निभ्यः श्वापदेभ्यः दुष्टजनेभ्यः सर्वेभ्यः सर्वौपद्रवेभ्यः गण्डीः ह्रीं ह्रीं ठः ठः।”
Tona Tootka Tantra Badha Nivarak Swayam Siddh Mantra :
आज यह भी देखने को मिलता है कि कुछ दुष्ट लोग किसी टोना करने वाले से कोई प्रयोग करा देते है और लोग भयानक कष्ट भोगने लगते है ।
दवा करने पर भी लाभ नहीं मिलता है, तब इस मंत्र को ११ माला से सिद्ध कर प्रयोग करे । लोग जादू टोना से प्रभावित होकर विक्षिप्त भी हो जाते है । किसी शुभ मूर्हूत मे इस सिद्ध मंत्र का प्रयोग करें । एक दीपक जलाकर किशमिश का भोग लगा कर मंत्र सिद्ध करे, फिर प्रयोग करते समय ७ बार स्वयं सिद्ध मंत्र पढ़ फूंक मारकर उतारा कर दें । ऐसा ७बार कर देने पर सभी जादू टोना नष्ट हो जाता हैं । बाद मे एक सफेद भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही से अनार के कलम से मंत्र लिख ताँबा या चाँदी की ताबीज मे यंत्र भरकर काला धागा लगाकर स्त्री हो तो बांया पुरूष हो तो दांये बांह मे ७बार मंत्र पढ़ बाँध ले ।
शाबर मंत्र- “ ॐ नमो आदेश गुरू को।ॐ अपर केश विकट भेष।खम्भ प्रति पहलाद राखे,पाताल राखे पाँव।देवी जड़घा राखे,कालिका मस्तक रखें।महादेव जी कोई या पिण्ड प्राण को छोड़े,छेड़े तो देवक्षणा भूत प्रेत डाकिनी,शाकिनी गण्ड ताप तिजारी जूड़ी एक पहरूँ साँझ को सवाँरा को कीया को कराया को,उल्टा वाहि के पिण्ड पर पड़े।इस पिण्ड की रक्षा श्री नृसिंह जी करे।शब्द साँचा,पिण्ड काचा।फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा।”
Gathiya Rog Aur Baat Bedna :
गठिया या वात रोग से लोग बहुत प्रभावित होकर हमेशा दवा खाते रहते है, इस प्रयोग को करे, लाभ होगा । किसी पर्वकाल मे मंत्र को सिद्ध करे । बाद में सन्धि वात या गठिया, वात या कमर में बाई, वात बेदना वाले रोगी को मंगल या रवि बार को मोर पंख से २१ बार उक्त मंत्र पढ़कर झाड़े । ११ माला जप कर मंत्र सिद्ध कर लें ।
मंत्र- “ ॐ मूल नमःधुक्ष नमः।जाहि जाहि ध्वाक्ष तमःप्रर्कीण अड़्गा प्रस्तार प्रस्तार मु़ञ्च।”
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