Tara Siddhi Ke Sadhana Vidhi :
“तारा सिद्धि (Tara Siddhi)” के लिए किसी भी महीने के शुक्ल पख्य से साधना प्रारम्भ की जा सकती है । इससे बौद्ध तंत्र की बिशेष उपास्य देबी तारा की सिद्धि (Tara Siddhi) होती है । इस तारा सिद्धि (Tara Siddhi) के लिए साधना रात्रि में नौ बजे के बीच होती है ।
तारा सिद्धि साधना (Tara Siddhi Sadhana) के लिए एकांत कमरा ठीक रहता है । उस कमरे की दीबार और छत गुलाबी रंग से पुती होनी चाहिए । कमरा साफ शुद्ध होना चाहिए । धोकर उसे साफ और यथा सम्भब पबित्र कर लेना चाहिए ।
Tara Siddhi Samagri :
तारा सिद्धि साधना के लिए निम्नलिखित सामान का प्रबन्ध करना आबश्यक है-
1. दो फुट लम्बा, दो ही फुट चौडा, तख्ता या चौकी, जो कम से कम भूमि से छ: इंच ऊंची हो।
2. चौकी पर बिछाने के लिए गुलाबी कपडा
3. गुलाबी रंग का सूती आसन या बिछाबन
4. गुलाबी रंग मे रंगे आधा किलो चाबल
5. गुलाबी रंग में रंगी रूई
6. एक बडा दीपक
7. घी
8. सुपारियां
9. कलश, जो गुलाबी रंग में रंगा हो
10. लौंग, इलायची, गंधक
Tara Siddhi Vidhi :
सर्ब प्रथम कमरे में उचित स्थान पर चौकी रखिए । उसके पास आसन को बिछाइए जो गुलाबी रंग का हो । चौकी पर गुलाबी कपडा बिछा दीजिए और उसके ऊपर गुलाबी रंगे चाबलों से अष्ट दल कमल बनाना है । साधक का मुख उत्तर दिशा की और होना चाहिए । चौकी भी साधक के सामने होती है । चाबलों से अष्टदल बनाने के बाद बीच में दीप रख दें जिसमें देशी घी भरा हो और गुलाबी रंग में रंगी रूई से बनी बती हो ।
उस अष्टदल के सामने चाबलों की सात छोटी छोटी ढेरियां बना दीजिए । प्रत्येक ढेरी पर एक एक सुपारी और एक एक कपूर की टिकिया रख दें । पिसी हुई गंधक की ढेरी बनाकर उसके ऊपर भी एक दीपक रख दिया जाता है । दीपक के सामने सात बताशे भी रखते हैं । सातों ढेरियों पर एक एक लौंग और इलायची रख देनी चाहिए ।
चौकी पर एक और से गुलाबी रंग में पुता बह कलश भी रख दीजिए । उस कलश में जो पानी भरें बह भी गुलाबी हो । कलश अधिक बडा भले ही न हो, केबल आधा किलो पानी का बहुत होता है ।
उस साधना (Tara Siddhi Sadhana) प्रारम्भ करने के लिए शुक्ल पख्य का गुरुबार हो और रात्रि का समय हो । सर्बप्रथम स्नान कीजिए, जनेऊ बदल लीजिए । गुलाबी रंग में रंगा हुआ जनेऊ पहनिए । गुलाबी रंग से रंगी धोती पहन लीजिए । दूसरी छोटी धोती आप ओढ सकते हैं । बह भी गुलाबी होनी चाहिए ।
दरबाजा बन्द कर लें किंतु सांकल आदि न लगायें । कलश से जल लेकर तीन बार आचमन करें और प्राणायम भी कर लें । फिर दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प करें….
“आज से चौदह दिनों तक में नित्य एक सौ एक बार तारा मंत्र की माला फेरूंगा । यह मै नित्य रात्रि को नौ बजे से प्रारम्भ करुंगा और माला की इस संख्या को पूर्ण करके यहीं आसन पर सो जाऊंगा । भोजन एक ही बार दिन में कर लूंगा । न झुठ बोलूंगा, न चारपाई पर सौऊंगा, न कोई ब्यापार आदि इन दिनों करना है । ब्रह्मचर्य ब्रत का पालन करते हुए पूरी निष्ठा से तारा सिद्धि करूंगा ।”
अष्टदल कमल के चारों और आपको तारा यंत्र बना ही लेना है । आसन पर बैठकर ठीक समय माला फेरनी है । दीपक जला लेने हैं । तारा मंत्र का जाप माला के फेरने के साथ साथ करें । माला रुद्राख्य के मनकों की हो । माला में मनके 108 हों ।
Tara Siddhi Mantra :
तारा सिद्धि मंत्र यह है— “ॐ तारा तुरी स्वाहा”
होठों ही होठों में मंत्र जपिए । मंत्र बोलते बोलते माला को सौ बार फेरें । लगभग तीन-चार बजे तक माला पूरी हो जायेगी । तब उसी आसन पर सो जाइए । इस प्रकार तारा सिद्धि (Tara Siddhi) का अनुष्ठान करते हैं । तारा देबी का चित्र आपकी कल्पना में होना चाहिए । आपका मन एकाग्र और पूर्णरूप से संयमित हो । मन में भय, शंका या अबिश्वास की तनिक भी भाबना न रहे। नियमपूर्बक इस अनुष्ठान को करें । आपके साधना कख्य में कोई प्रबेश न करे । जिस समय साधना कख्य में जप में लगे हो, प्यास लगे या पेशाब की हाजत हो, आसन से न उठे । एकाग्रचित हूकर जाप में लगे रहें । चौदह दिन पुरे होने से पूर्ब ही कई बाधाए आ सकती है । जैसे –
आपके दरबाजे पर थपकियां पड सकती है, ईट-पत्थरों की बौछार हो सकती है, तरह –तरह की आबाजें सुनाई दे सकती है, डराबनी आकृतियां आंखों के आगे दिखाई पड सकती हैं। किसी भी परिस्थिति में आप डरें नहीं ।
आपको ऐसी भयानक आकृति भी दीख सकती है कि आप डरकर बेहोश हो सकते है । जैसे –एक बिशाल डील-डौल बाली स्त्री , बिखरे बाल, बडी-बडी आंखे, लम्बे –लम्बे दांत, हाथ में कटा हुआ सिर, उससे टपकता खून, उसका चेहरा डराबना और चाल भी डराबनी ।
आपके चेहरे पर भय का कोई चिन्ह नहीं आना चाहिए। आप पूर्णरुप से अपने मन पर काबु रखे । बिलकुल न डरें । अनेक साधकों के साथ ऐसा हो सकता है कि बह भयंकर आकृति बाली स्त्री छती में लात मार सकती है । शरीर से नोच कर गोश्त खा सकती है ।
आप निशिचत , निर्भिक बने हुए, अपने जाप में लगे रहें । बोलें भी नहीं । अपने मंत्र जाप के सिबा कुछ भी न कहें । पूरे होश में रहें । निशिचत रूप से सफलता प्राप्त होगी ।
आपको बुखार आ सकता है, कोई अन्य अस्वस्थता हो सकती है, फिर भी अपने अनुष्ठान में बिघ्न न पडने देना है । आप बिश्वास रखें, जब सुबह उठेगे तो न मांस नोचा मिलेगा ,न रक्त निकला हुआ ।
चौदह्बें दिन आपको सफलता मिल जायेगी । आप तारा सिद्धि (Tara Siddhi) में सफल होंगे । अपूर्ब सुन्दरी के दर्शन होंगे, बही आपकी उपास्या देबी है ।
उस सौंदर्य और यौबन की मूर्ति से मुग्ध न हों । बिचलित न हों। संयम न टुटे। मन न डोल जाये ।
जब बह साधक की मनोकामना पूछे तो साधक यही कहे कि बह उसे बासना रहित प्रेम करेगा । बह उसकी मनोकामना पूर्ण करती रहेगी ।
इस प्रकार “तारा सिद्धि (Tara Siddhi)” सम्पन्न हो जाती है और साधक जो इछा करता है, बह पूरी कर देती है ।
सिद्धि प्राप्त होने के उपरांत कभी भी उसका दुरूपयोग न करें तथा अनुचित मांग न करें । जितना भी हो सके, लोकोपकार की बातें सोचें। निजी स्वार्थ को पूरा न करें । अत्यंन्त आबश्यक हो तो भी अपने लिए करे ।
दुरुपयोग करने, स्वार्थी हो जाने, घमण्ड आ जाने पर सिद्धियां नष्ट हो जाती है ।
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जय माँ कामाख्या