बार्ताली देवी साधना

यह एक अत्यन्त प्राचीन ब दुर्लभ साधना है, इस बार्ताली साधना का सही बैदिक स्वरूप यहाँ प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हुं । भगबती बार्ताली का सीधा सम्बंन्ध कुण्ड्लिनी देबी से है, जो सूख्यम शरीर के षट्चक्रों का नियन्त्रण करती हैं । इस साधना से साधक को ब्रह्मात्व की प्राप्ति हो जाती है । इसकी सिद्धि से दु:ख, दरिद्रता का नाश होता है ।
 
बार्ताली की साधना का बिधान अत्यन्त दुर्लभ है । यह Vartali Devi Sadhana त्रिकाल दिब्य दृष्टि प्रदान करने बाली है । इसकी सिद्धि से साधक त्रिकाल ज्ञान प्राप्त कर लेता है । जब साधक इस बार्ताली मंत्र की सिद्धि प्राप्त कर लेता है, तब देबी प्रसन्न होकर दर्शन देती है । बरदान स्वरुप बह साधक के हृदय में दिब्य प्रकाश पुज्ज के रूप में समाहित हो जाती है । तब साधक का शरीर कुछ समय कंपायमान रहता है, तत्पश्चात् बह त्रिलोक ज्ञाता हो जाता है । इसके बाद जब कोई भी ब्यक्ति साधक के समख्य जाता है, तो बह देबी की कृपा से ब्यक्ति का भूत, भबिष्य और बर्तमान सरलता से बता देता है । बह जब चाहे, बार्ताली देबी से शक्ति बार्ता कर सकता है । इस साधना की बेदोक्त बिधि इस प्रकार है-
 
Vartali Devi Sadhana Vidhi
सर्बप्रथम एकान्त कख्य एक चयन करें। दो फुट लम्बी, दो फुट चौडी लकडी की चौकी स्थापित करें । उस पर लाल रंग का रेशमी बस्त्र बिछायें । उस पर चाबल बिछाकर ताम्रपत्र पर बना सिद्धि किया हुआ बार्ताली यंत्र स्थापित करें । अब चौकी के चारो कोनों पर चार मिठी तेल का दीपक जला दें । यह साधना कृष्ण पख्य की चतुर्दशी से आरम्भ करने का बिधान है । लाल रंग का आसन बिछायें, साधक स्वयं भी लाल बस्त्र ही धारण करें । एक घी का अखण्ड दीपक अलग से जलाये । पहले पंचोपचार पूजन करें । गुरू पूजन , गणेश पूजन ब बास्तु पूजन सम्पन्न करें । मंत्र जप हेतु सिद्ध बार्ताली माला का ही प्रयोग करें ।
 
(संकल्प और बिनियोग बिधि पुर्बक करने के पश्चात् ऋष्यादि न्यास करें । न्यासादि सम्पूर्ण करने के पश्चात् बार्ताली मंत्र का २७ माला जप करें। मंत्र यहाँ देना सम्भब नहीं, जो साधक भाई साधना करना चाहते है ,वो संपर्क कर सकते हैं ।)
 
यह बार्ताली देबी साधना (vartali devi sadhana) कृष्ण पख्य की चतुर्दशी से शुक्ल पख्य की पूर्णिमा तक यह साधना करनी है । यह मंत्र जाप पूर्ब दिशा की और मुख करके दाहिने हाथ की मध्यमा और अंगूठे के अग्र भाग से करें । बार्ताली देबी साधना (vartali devi sadhana) मंत्र उच्चारण शुद्ध ब स्पष्ट स्वर से करें । जप करते समय दाहिने और ताम्र जल कलश भी स्थापित करें ।
 
साधना सम्पन्न होने पर बार्ताली देबी प्रतिबिम्ब के रूप में प्रकट होकर साधक के हृदय में बिन्दु रूप में समा जाती है । जिससे साधक के चारों और एक दिब्य प्रकाश पुज्ज बन जाता है ।
 
Vartali Devi Sadhana पूर्ण होने के पश्चात् बार्ताली गुटिका को साधक दाहिनी भुजा पर धारण कर लें । सिद्धि के पश्चात् साधक तीनों लोक में घट रही किसी भी घटना को चलचित्र की भांति देखने में समर्थ हो जाता है, बह त्रिकाल दर्शी हो जाता है ।

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जय माँ कामाख्या

Acharya Pradip Kumar is renowned as one of India's foremost astrologers, combining decades of experience with profound knowledge of traditional Vedic astrology, tantra, mantra, and spiritual sciences. His analytical approach and accurate predictions have earned him a distinguished reputation among clients seeking astrological guidance.

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