दैत्य साधना की विधि

Daitty Sadhana Ki Vidhi :

नाना प्रकार की देबयोनियों में से अपदेब योनियां भी हैं उनमें से दैत्य भी आते हैं जैसे राक्षस भी अपदेब हैं और असुर भी । इनकी साधना यद्दपि उग्रसाधना में आती है, परिणाम ठीक ही देते हैं ।

Daitty Sadhana Parichay :

दैत्यों में शायद ही कोई हो जो भक्त न रहा हो शिब, सूर्य, ब्रह्मा अथबा शक्ति के उपासक इन दैत्यों की उपासना से सबसे पहला लाभ भक्ति की प्राप्ति का होता है । बे कुपथ पर जाने से रोकते हैं और भक्त की सहायता हर समय करते रहते हैं ।

Daitty Sadhana Me Daitty Gana :

समष्टि के आदिकाल से ही असुर, राक्षस और दैत्य होते आएं हैं, अब भी बे अपने लोकों में निबास करते हैं । अनमें से बहुत से दैत्य बडे बलबान्, धनबान, दयालु और परोपकारी भी हैं । बे मनुष्यों अथबा निर्बलों और अपने भक्तों की बहुत सहायता करते हैं ।

Daitty Sadhana Phal :

यदि दैत्य सिद्ध हो जाए तो एक ही दैत्य सम्पूर्ण धरा पर साधक का साम्राज्य स्थापित कराने में सक्षम हो सकता हैं । अतुलित धन, बैभब, बल, रूप, गुण, बिद्या दे सकता है । शत्रुओं का नाश कर सकता है और अपने भक्त की सब प्रकार रक्षा सहायता करता हैं ।

Daitty Sadhana Patra :

साधना की पात्रता केबल उन लोगों की है जो बास्तब में ही धार्मिक और परोपकारी हैं जो दुराचारी और दुर्ब्यबसनी नहीं हैं अन्यथा दैत्यों का कोपभाजन भी बनना पड जाता है ।

Daitty Sadhana Vidhan :

घोर स्थान, निर्जन या नदी तट, जहाँ एक कोस की त्रिज्या में मनुष्य आस-पास न रहते हों । अकेला साधक पूर्णमासी की रात से दैत्य साधना आरम्भ करे । दैत्यों का गुण है कि यदि उनकी सतोगुणी साधना करो तो बे सतोगुणी स्वरूप में सिद्ध होते हैं और तपोगुणी साधनों से साधना करो तो तपोगुणी स्वरूप में सिद्ध होते हैं किन्तु दैत्यों के तपोगुणी स्वरूप को सहना सामान्यत: मनुष्य के बश की बात नहीं होती अत: सतोगुणी साधना ही करनी चाहिए । एक चौकी पर दैत्यराज की पूजा करके उसी के बांयी तरफ सामने दैत्य पूजन करें ।

Daitty Sadhana Vidhi :

इस पूजा को रात ९ बजे से आरम्भ करें । जल, फूल, चाबल, चन्दन, भस्म, धूपदीप, दूध मिठाई का भोग लगाबें । दान दक्षिणा आदि देकर ५००० जप नित्य अगली पूर्णिमा तक करें । सिद्धि निश्चय होती है चाहे प्रत्यक्ष या ध्वनि स्वरूप में बर देते हैं । बर देना दैत्यों का स्वभाब है ।

Daitty Sadhana Mantra :

दैत्य साधना मंत्र : “ॐ नमो: दैत्येन्द्र प्रसीद एकं दैत्यं मम बश्यं कुरू ते नम: ।।”
दूसरा मंत्र : “ॐ नमो: महाबली दैत्य मम संहायकों भब स्वाहा।।”

इसी मंत्र से पूजा करनी है और दूसरे मंत्र का जप करके सिद्धि पानी है। बाद में भी इस से काम लेना है ।

After Daitty Sadhana :

दैत्य साधना में इस बात की महत्ता है कि किस प्रकार के दैत्य की साधना की गई है तद्नुसार ही साधना के पश्चात् आचरण करना पडता है । किन्तु जैसी भी दैत्य साधना हो प्रत्येक को समय समय पर सेबा पूजा देनी चाहिए । धर्म की क्रियाओं के मामले में दैत्य बडे कठोर होते हैं बे जरा सी लापरबाही क्षमा नहीं करते हैं ।

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