दक्षिणावर्ती शंख का अनोखा प्रयोग

Dakshinaavarti Sankh Ka Anokha Prayog :

हिंदू संस्कृति में शंखों का विशेष महत्व है । पूजा अनुष्ठानों तथा अन्य मांगलिक उत्सवों में शंखों का उपयोग किया जाता है । इसके अतिरिक्त इनका उपयोग विभिन्न कामनाओं की पूर्ति हेतु और विभिन्न रोगों की चिकित्सा में भी किया जाता है ।

वैसे तो शंख अनेक प्रकार के होते हैं, लेकिन उनमें दो मुख्य हैं- दक्षिणावर्ती और वामावर्ती ।
अनेक चमत्कारी गुणों के कारण दक्षिणावर्ती शंख का अपना विशेष महत्व है । यह Dakshinaavarti Sankh दुर्लभ तथा सर्वाधिक मूल्यवान होता है । असली दक्षिणावर्ती शंख (dakshinaavarti sankh) को प्राण प्रतिष्ठित करके उद्योग-व्यवसाय स्थल, कार्यालय, दुकान अथवा घर में स्थापित कर उसकी पूजा करने से दुख-दारिद्र्य से मुक्ति मिलती है और घर में स्थिर लक्ष्मी का वास होता है । इस dakshinaavarti sankh की स्थापना करते समय निम्नलिखित श्लोक करना चाहिए ।
“दक्षिणावर्तेशंखाय यस्य सद्मनितिष्ठति।
मंगलानि प्रकुर्वंते तस्य लक्ष्मीः स्वयं स्थिरा।
चंदनागुरुकर्पूरैः पूजयेद यो गृहेडन्वहम्।
स सौभाग्य कृष्णसमो धनदोपमः।।”
यह विशिष्ट dakshinaavarti sankh शत्रुओं को निर्बल और रोग, अज्ञान तथा दारिद्र्य को दूर करने वाला और आयुवर्धक होता है । ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है-
शंख चंद्रार्कदैवत्यं मध्य वरुणदैवतन्।
पृष्ठे प्रजापर्ति विद्यादग्रे गंगा सरस्वतीम्।।
त्रैलोक्ये यानि तीर्थापि वासुदेवस्य चाज्ञया।
शंखे तिष्ठन्ति विप्रेन्द्र तस्मा शंख प्रपुजयेत्।।
दर्शनेन हि शंखस्य की पुनः शास्त्री स्पर्शनेन तु।
विलयं यातिं पापनि हिमवद् भास्करोदयेः।।
यह dakshinaavarti sankh चन्द्र और सूर्य के समान देव स्वरूप है । इसके मध्य भाग में वरुण और पृष्ठ भाग में गंगा के साथ-साथ सारे तीर्थों का वास है । इसे कुबेर का स्वरूप भी माना जाता है। अतः इसकी पूजा अवश्य ही करनी चाहिए। इसके दर्शन मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं ।
महर्षि मार्कण्डेय के अनुसार दक्षिावर्ती शंख (Dakshinaavarti Sankh) की पूजा उपासना लक्ष्मी प्राप्ति का सर्वोत्तम उपाय है ।
शंकराचार्य के अनुसार दक्षिणावर्ती शंख की स्थापना एक श्रेष्ठ तांत्रिक प्रयोग है, जिसका प्रभाव तुरंत और अचूक होता है ।
इस तरह हमारे ऋषि मुनियों ने अपनी अपनी संहिताओं में दक्षिणावर्ती शंख का विशद उल्लेख किया है ।
वांछित फल की प्राप्ति के लिए इस शंख की अष्ट लक्ष्मी और सिद्ध कुबेर मंत्रों से प्राण प्रतिष्ठा कर स्थापना करनी चाहिए ।
जिस घर में यह शंख रहता है वह सदा धन-धान्य से भरा रहता है । इसके अतिरिक्त जिस परिवार में शास्त्रोक्त उपायों द्वारा इसकी स्थापना की जाती है उस पर भूत, प्रेत, पिशाच, ब्रह्म, राक्षस आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। शत्रुपक्ष कितना भी बलशाली क्यों न हो उस घर का कुछ नहीं बिगाड़ सकते । इसके प्रभाव से दुर्घटना, मृत्यु भय, चोरी आदि से रक्षा होती है ।
शंख को सुख-समृद्धि, यश, कीर्ति तथा लक्ष्मी का साक्षात् प्रतीक माना गया है । धार्मिक कृत्यों, अनुष्ठान-साधना, तांत्रिक-क्रियाओं आदि में सफलता हेतु शंख का प्रयोग किया जाता है । दोषमुक्त शंख को किसी शुभ मुहूर्त में गंगाजल, गोघृत, कच्चे दूध, मधु, गुड़ आदि से अभिषेक करके अपने पूजा स्थल में लाल कपड़े के आसन पर स्थापित करें, घर में लक्ष्मी का वास बना रहेगा। लक्ष्मी जी की विशेष कृपा हेतु दक्षिणावर्ती शंख का जोड़ा, अर्थात् नर और मादा, देव प्रतिमा के सम्मुख स्थापित करें ।
शास्त्रों में अलग अलग प्रयोजनों हेतु अलग अलग शंखों का उल्लेख मिलता है । इस संदर्भ में एक संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है ……
अन्नपूर्णा शंख स्थापित करने से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है ।
मणि पुष्पक तथा पांच जन्य शंख की स्थापना से घर का वास्तु दोष दूर होता है । इस शंख में जल भरकर घर में छिड़कने से सौभाग्य का आगमन होता है ।
गणेश शंख जल भर कर उसका सेवन करने से अनेक रोगों का शमन होता है ।
विष्णु शंख से कार्य स्थल में जल छिड़काव करने से उन्नति के अवसर बनने लगते हैं ।
दक्षिणावर्ती शंख कल्प करने के इच्छुक साधकों को निम्नलिखित सरल प्रयोग करना चाहिए ।
Dakshinaavarti Sankh Pujan Samagri :
दोषमुक्त तथा पवित्र शंख, शुद्ध घी का दीपक, अगरबत्ती कुंकुम, केसर, चावल, जलपात्र और दूध।
Dakshinaavarti Sankh Pujan Vidhi:
शंख को दूध तथा जल से स्नान कराकर साफ कपड़े से उसे पोंछ कर उस पर चांदी का बर्क लगाएं । फिर घी का दीपक और अगरवत्ती जला लें । इसके बाद दूध तथा केसर के मिश्रण से शंख पर श्री एकाक्षरी मंत्र लिखकर उसे तांबे अथवा चांदी के पात्र में स्थापित कर दें । अब निम्नलिखित मंत्र का जप करते हुए उस पर कुंकुम, चावल तथा इत्र अर्पित करें । फिर श्वेत पुष्प चढ़ाकर भोग के रूप में प्रसाद अर्पित करें ।
Dakshinaavarti Sankh Pujan Mantra:
“ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीधर करस्थायपयोनिधि जाताय श्री।
दक्षिणावर्ती शंखाय ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीकराय पूज्याय नमः।।”
अब मन से शंख का ध्यान करें …
Dakshinaavarti Sankh Dhyan Mantra :
“ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं श्रीदक्षिणावर्तशंखाय भगवते विश्वरूपाय सर्वयोगोश्वराय त्रैलोक्यनाथाय सर्वकामप्रदाय सर्वऋद्धि समृद्धि वांछितार्थसिद्धिदाय नमः।”
ऊँ सर्वाभरण भूषिताय प्रशस्यांगोपांगसंयुताय कल्पवृक्षाध- स्थितायकामधेनु चिंतामणि-नवनिधिरूपाय चतुर्दश रत्न परिवृताय महासिद्धि-सहिताय लक्ष्मीदेवता युताय कृष्ण देवताकर ललिताय श्री शंखमहानिधिये नमः।
इसके अतिरिक्त बीज मंत्र अथवा पांच जन्य गायत्री शंख मंत्र का ग्यारह माला जप करना भी आवश्यक है ।
बीज मंत्र: –“ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लू दक्षिणमुखाय शंखनिधये समुद्रप्रभावय नमः।”
शंख का शाबर मंत्र: –“ऊँ दक्षिणावर्ते शंखाय मम् गृह धनवर्षा कुरु-कुरु नमः।।”
शंख गायत्री मंत्र: –“ ऊँ पांचजन्याय विद्महे। पावमानाय धीमहि। तंन शंखः प्रचोदयात्।”
ऋद्धि-सिद्धि तथा सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए दक्षिणावर्ती शंख :
दोषमुक्त दक्षिणावर्ती शंख का ऊपर वर्णित ध्यान मंत्र से पूजन करें। फिर गायत्री और बीज मंत्र दोनों का शंख के सामने बैठकर जप करते रहें । एक मंत्र पूरा होने पर शंख में अग्नि में सामग्री होम करने की तरह चावल तथा नागकेसर दाएं हाथ के अंगूठे, मध्यमा तथा अनामिका से छोड़ते रहें। जब शंख भर जाए तो उसे घर में स्थापित कर लें । ध्यान रखें कि शंख की पूंछ उत्तर -पूर्व दिशा की ओर रहे । किसी शुभ मुहूर्त अथवा दीवाली से पूर्व धन त्रयोदशी के दिन पुराने चावल तथा नागकेसर ऊपर वर्णित विधि से पुनः बदल लिया करें । इस प्रकार सिद्ध किया हुआ शंख लाला कपड़े में लपेटकर धन, आभूषण आदि रखने के स्थान पर स्थापित करने से जीवन के हर क्षेत्र में निरंतर श्री की प्राप्ति होने लगती है ।

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जय माँ कामाख्या

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