गति स्तम्भन प्रयोग

Gati Stambhan Prayog :

किसी भी सबारी की चाल को रोकने के लिए निम्नलिखित प्रयोग (Gati Stambhan Prayog) प्रभाबकारी बताया गया है । गति स्तम्भन प्रयोग प्रारम्भ (Gati Stambhan Prayog) करने से पूर्ब निम्नलिखित सामग्री एकत्र करके रख लेनी चाहिए –
1. कुश थोड़े से 2. मृगछाला अथबा बाघम्बर 3.मिट्टी की हांडी 4. हांडी के ऊपर ढकने का ढक्क्न 5. मृत की खोपड़ी 6. रीढ़ की हड्डी 7. गाय का शुद्ध घी 8. धूप, गुग्गुल और लोबान 9. गधे का मूत्र 10. देशी कपूर 11. आम, बबूल, ढाक के पते 12. दियासलाई गूलर तथा बेल की सूखी समिधा 13. दीपक 14. उल्लू के अंडे के छिलके 15. उल्लू की बीट 16. बैठने के लिए ऊनी कम्बल 17. हबन कुण्ड ,जलपात्र और स्त्रुबा

इन सब बस्तुओं को लाकर इकठ्ठा कर लें । फिर पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि से अमाबस्या के बीच की अबधि में एक उल्लू लें आयें । जीबित उल्लू को न मारें ।

जब उल्लू सहित सब बस्तुएँ एकत्रित हो जाएं ,तब अमाबस्या की आधी रात के समय सब बस्तुओं को लेकर श्मशान में जा पहचे और बहां किसी जलती हुई चिता के सामने बैठ जायें । बैठने से पूर्ब ऊनी कम्बल के आसन को बिछा लेना चाहिए तथा मृगछाल को सामने बिछाकर , उसके ऊपर उल्लू के शरीर को रख देना चाहिए ।

इसके बाद आसन तथा मृगछाल के मध्य खाली जगह में हबन कुण्ड रखकर , उनमें समिधा को रखना चाहिए ।अगर चिता धधक रही हो तो उसमें से थोड़ी सी अग्नि निकालकर अपने हबन कुण्ड के बीच में रख देनी चाहिए ।

अब अग्नि प्रज्वलित हो जाये, तब उसमे निम्नलिखित मंत्र (Gati Stambhan Prayog) का उचारण करते हुए एक एक स्त्रुबा घी की आहुति डालना आरम्भ करना चाहिए ।

Gati Stambhan Prayog Mantra :

स्तम्भन मंत्र : “ओं नम: काली कंकाली श्मशान बासिनी महाकाली ऐ ह्रीं श्रीं क्लीं नम: ।”

उक्त गति स्तम्भन मंत्र (Gati Stambhan Prayog) द्वारा 2108 आहूतिया देने के बाद हांडी को उस हबन कुण्ड में प्रज्वलित अग्नि के ऊपर रख दें । जब यह देखें की हांडी में भरी हुई बस्तुएँ गल गई होगी, तब उसमें रीढ़ की हड्डी भी डाल दें । तब उसके भीतर उल्लू की बीट , अंडे के छिलके ,गधे का मूत्र तथा उल्लू के शरीर को भरकर ऊपर से ढक्कन रख दें । यह ध्यान रहे हबन कुण्ड की आहूतिया देते रहें तथा प्रत्येक आहुति के साथ पुर्बोक्त गति स्तम्भन मंत्र (Gati Stambhan Prayog Mantra) का उचारण करते रहें । दीपक भी जलाकर रख दें । दीपक को बुझाने न दें ।

मनुष्य की खोपड़ी में शराब भरकर हबन कुण्ड में डालना शुरू करें ।मंत्र का उचारण करना आबश्यक है ।सम्पूर्ण शराब की 2108 आहुतियाँ दे ।शराब समाप्त हो जाये, तब मनुष्य की खोपड़ी को भी अंतिम आहुति के रूप में उसी हबन कुण्ड में डाल दें ।इसके बाद मिट्टी की हांडी से ढक्क्न हटाकर यह देखें की उसमे भरी हुई सभी बस्तुएं जलकर राख हो गई है अथबा नहीं ?

भस्म हो गई हों तो हांडी को हबन कुण्ड से बाहर निकाल कर रख लें और अगर अभी राख न हुई हो तो हबन कुण्ड में और अधिक समिधा रखकर तथा घी डालकर उन्हें भस्म करें ।

जब भस्म तैयार हो जाये उस दिन हांडी से राख निकालकर , किसी पात्र में भरकर रख लें तथा घर लौट आयें और 31 दिन तक नित्य प्राय: 2108 बार पुर्बोक्त मंत्र द्वारा भस्मपात्र को अभिमंत्रित करते रहें ।

इसके बाद उस पात्र में थोड़ी सी भस्म जिस बाहन के ऊपर डाल दी जायेगी , उसकी गति स्तम्भन हो जायेगी । उक्त बिधि से स्तंभित हो गई सबारी की गति को जब प्रारम्भ करना हो तो उस सबारी से उल्लू को बाई टांग की हड्डी का स्पर्श कर देना चाहिए । ऐसा करने पर बह पुन: चलना प्रारम्भ कर देगी ।

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