फेत्कारिणी साधना परिचय : श्मशान की उग्र साधनाओं में फेत्कारिणी साधना किसी समय बहुत प्रचलित थी । यह बहुत उग्र और हठी होती है, जरा सी चूक पर बिफर जाती है पर अपने साधक का त्याग कभी नहीं करती ।
संक्षेप :श्मशान में असंख्य देब- उपदेब, आत्माएं, प्रेत, पिशाच निबास करते हैं किन्तु श्मशान निर्जन में हो तथा कम से कम हजार बर्ष पुराना हो तो बहीं फेत्कारिणी समूह रहता है । ये एक नहीं सिद्ध होती, कम से कम पांच, सात, ग्यारह की संख्या में ही सिद्ध हो जाती है जो सदैब साथ रहती हैं ।
फेत्कारिणी साधना बिधान : प्राचीन श्मशान के मूल स्थान से १०० धनुष यानी चार सौ हाथ हटकर किसी पुराने वृक्ष के नीचे साधना स्थल बनाबें । नित्य सायंकाल भैस के गोबर से बहाँ लीपकर स्थान शुद्ध करें । फिर काले कम्बल के आसन पर मूंज का जनेऊ पहनकर काला कम्बल लपेट एक बस्त्र में बैठ दक्षिणाभिमुख हो साधना करें । साधना अमाबस्या से आरम्भ करनी होती है ।
पूजा बिधि :लाल सिन्दूर, जल,लाल फूल, धूप दीप, नैबेद्य पका चाबल, सिन्दूर मिला पतल में घी नमक लाल मिर्च के साथ परोस कर रखें मिट्टी के बर्तन में पानी रखें, बैठने को पतल का आसन उन्हें दें। उस पे पानी ही दें फिर इस मंत्र का जाप रात १० नजे से १ बजे तक ३००० की संख्या में मनुष्य की हड्डी की माला से करें ।
फेत्कारिणी साधना सिद्धि मंत्र : ॐ नमो श्मशानेश्वर फेत्कारिणीनाम् मम् संगिनीं कुरू ते नम: ।।
इस मंत्र का जाप कभी दिन में न करें।सिद्धि होने के बाद इस मंत्र से उन्हें बुलाबें ।
सिद्धि के पश्चात् का मंत्र : (आबाहन मंत्र) : ॐ नमो: फेत्कारिणीयों मम संगिनीभ्यों मम सहाय कुरू ते नम: ।।
इस मंत्र की एक माला जप धूप देकर सिद्धि के बाद करें बह भी रात में ही तो बे आकर कार्य सिद्ध कर जाती हैं । पर उम्रभर रोज उन्हें रात में भोजन देता रहे, धूप दीप भी । दीप तेल का । यह उपासना घोर तमो गुणी और बहुत भयकारी है । ३१ दिन श्मशान में ही रहना पडता है ।
उसी हाँडी में बनाकर बहीं भोजन करना पडता है । किन्तु भय न करें । साधना अमाबस्या से अमाबस्या तक चलती है । दिन रात मौन रहें किसी से बात न करें। अपने सारे काम स्वयं करें । ३१ दिन का साधन साथ लेके जाएं । लंगोटी न पहनें, दिनभर में नहाएं नहीं, रात में नहाएं । एकबार भोजन करें, बही भोजन उन्हें देके जप करके तब आधी रात के बाद खाएं । फेत्कारिणियां प्रकट होकर साथ देने का बचन देती हैं ।
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